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________________ 豐客 जैनाचार्यों का अलंकारशास्त्र मे योगदान फल, (१०) मल्लिकामकरन्द-प्रकरण और (११) वनमाला - नाटिका । कुमार बिहार शतक, द्रव्यालकार और यदुविलास ये उनके अन्य प्रमुख ग्रन्थ है । एतदतरिक्त कुछ छोटे-छोटे स्तव भी पाये जाते हैं। इस प्रकार उनके उपलब्ध ग्रन्थों की कुल संख्या डा० के० एच० त्रिवेदी ने ४७ स्वीकार की है ।" नाट्य-दर्पण यह नाट्य विषयक प्रामाणिक एव मौलिक ग्रन्थ है । इसमें महाकवि रामचन्द्र गुणचन्द्र ने अनेक नवीन तथ्यों का समावेश किया है । आचार्य भरत से लेकर धनजय तक चली आ रही नाट्यशास्त्र की अक्षुण्ण परम्परा का युक्तिपूर्ण विवेचन करते हुए आचार्य ने प्रस्तुत ग्रन्थ मे पूर्वाचार्य स्वीकृत नाटिका के माथ प्रकरणिका नाम की एक नवीन विधा का सयोजन कर द्वादश-रूपको की स्थापना की ह । इसी प्रकार रस की सुख-दुखात्मकता स्वीकार करना इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता है । नाट्य दर्पण मे नौ रसो के अतिरिक्त तृष्णा, आद्रता, आसक्ति, अरति और सतोष को स्थायीभाव मानकर क्रमश लौल्य, स्नेह, व्यसन, दुख और मुग्व-रस की भी सम्भावना की गई है । इसमे शान्त रम वा स्थायिभाव शम स्वीकार किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ मे ऐसे अनेक ग्रन्थो का उल्लेख मिलता है जो अद्यावधि अनुपलब्ध हैं । कारिका रूप में निबद्ध किसी भो गूढ विषय को अपनी स्वोपज्ञ विवृति मे इतने स्पष्ट और विस्तार के साथ प्रस्तुत किया है कि साधारण बुद्धि वाले व्यक्ति को भी विषय समझने में कठिनाई का अनुभव नही करना पडता है । इसीलिए इस ग्रन्थ की कतिपय विशेषताओ को ध्यान में रखते हुए आचार्य बलदेव उपाध्याय ने लिखा है कि नाट्य विषयक शास्त्रीय ग्रन्थो मे नाट्यदर्पण का स्थान महत्वपूर्ण है । यह वह शृङ्खला है जो धनजय के साथ विश्वनाथ कविराज को जोडती है । इसमे अनेक विषय बडे महत्वपूर्ण हैं तथा परम्परागत सिद्धान्तो से १ वही, पृ० २२१-२२२ । नलविलास के सपा० जी० के० गोन्डेकर एव नाट्यदर्पण के हिन्दी व्याख्याकार आचार्य विश्वेश्वर ने उक्त ग्रथो की भूमिका मे रामचन्द्र के ज्ञात ग्रन्थो की कुल संख्या ३६ मानी है । २ स्थायीभाव श्रितोत्कर्षो विभावव्यभिचारिभि । स्पष्टानुभावनिश्चय सुखदुखात्मको ३ वही, पृ० ३०६ । रस. ॥ - हिन्दी नादर्पण, ३१७
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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