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मृत्यु - १९६ में हमी की । इस बीच रामचन्द्र का परिचय सिवराण से हो चुका था तथा प्रसिद्धि भी प्राप्त कर चुके थे। सिवराज जयसिंह के जरा-- पिकारी कुमारपाल ने सं० १९९८ से १२३०' या उसके भी बलराविकारी अजयदेव ने स. १२३० से १२३३५ तक गुर्जर भूमि पर राज्य किया था। इसी अजयदेव के शासन काल में रामचन्द्र को राजाज्ञा द्वारा तत तान-पष्टिका पर बैठाकर मारा गया था।
उपर्युक्त विवेचन से अनुमान लगाया जा सकता है कि भाचार्य रामचन्द्र का साहित्यिक-काल वि.सं. १९९३ से १२३३ के मध्य रहा होमा ।।
महाकवि रामचन्द्र प्रबन्ध-शतकर्ता के नाम से विख्यात हैं। इसके संबध मै विद्वानो ने दो प्रकार से विचार अभिव्यक्त किए हैं। कुछ विद्वान् प्रबन्धशतकर्ता का अर्थ "प्रबन्धशत" नामक ग्रन्थ के प्रणेता ऐसा करते है। दूसरे विद्वात् इसका अर्थ "सौ अन्थो के प्रणेता" के रूप में स्वीकार करते हैं। डा. के. एच० त्रिवेदी ने अनेक तर्कों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि रामचन्द्र सौ प्रवन्धों के प्रणेता थे । यह मत अधिक मान्य है, क्योकि ऐसे विलक्षण एव प्रतिमा सम्पन्न विद्वान् के लिए यह असम्भव भी प्रतीत नही होता है। उन्होंने अपने नाट्य दर्पण मे स्वरचित ११ रूपको का उल्लेख किया है। इसकी सूचना प्राय "अस्मदुपज्ञे---" इत्यादि पदों से दी गई है । जिनके नाम निम्न प्रकार हैं-(१) सत्य हरिषचन्द्र नाटक, (२) नलविलास-नाटक, (३) रघुविलास-नाटक, (6) यादवाम्युदय, (५) राषवाभ्युदय, (६) रोहिणी मृगाकप्रकरण, (७) निर्भयभीम-व्यायोग, (८) कौमुदीमित्रानन्द-प्रकरण, (९) सुना
१ हिन्दी नाट्य-दर्पण, भूमिका, पृ० ३ । २ द्वादशस्वध वर्षाणां शतेषु विरतेषु च । एकोनेषु महीना सिखाधीशे दिव गते ॥
-प्रभावकचरित-हेमसूरिचरित, पृ० १६७ । ३ प्रबन्धचिन्तामणि-कुमारपालावि प्रबन्ध, पृ० १५ । ४ वही, पृ. १७॥ ५ प्रबन्धचिन्तामणि कुमारपालादि प्रबन्ध, पृ०६७। ६ वी नाट्य वर्षण आफ रामचन्द्र एण्ड गुणचन्द्र . एक क्रिटीकल स्टडो,
पृ० २१६-२०॥