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जैनाचार्यों का बलकारशास्त्र में योगदान
नामक चार प्रभेद, नायक के गुण, नायक के अनुचर, नायिकाभेद, स्त्री की आठ अवस्थाएँ, दस कामावस्थाएं, और कालादि-औचित्यों का विवेचन किया गया है ।
मण्डन-मन्त्री
मण्डन का नाम प्राय मण्डन मंत्री के रूप मे जाना जाता है । ये श्रीमाल ' वश मे पैदा हुए थे । इनके पिता का नाम बाहर और पितामह का नाम कांझड़ था । ये बड़े प्रतिभा सम्पन्न विद्वान् और राजनीतिज्ञ थे । श्रीमन्त कुल मे उत्पन्न होने के कारण उनमे लक्ष्मी एव सरस्वती का अभूतपूर्व मेल था । ये उदार और दयालु प्रकृति के थे । अल्पवय मे ही मण्डन मालवा मे मांडवगढ़ के बादशाह होशग के कृपापात्र बन गये थे और कालान्तर में उनके प्रमुख मन्त्री बने । सम्राट होग इनकी विद्वता पर मुग्ध थे । राजकार्य के अतिरिक्त बचे समय को मण्डन विद्वत् सभाओ मे ही व्यतीत करते थे । ये प्रत्येक विद्वान् और कवि का बहुत सम्मान करते थे तथा उनको भोजन-वस्त्र एव योग्य पारितोषिक आदि देकर उनका उत्साहवर्धन करते थे । मण्डन संगीत के विशेष प्रेमी थे । इसके अतिरिक्त वे ज्योतिष, छन्द, अलंकार, न्याय, व्याकरण आदि अन्य विद्यामो मे भी निपुण थे । मण्डन की विद्वत्सभा मे कई विद्वान एवं कुशल कवि स्थायी रूप से रहते थे, जिनका समस्त व्यय वह स्वयं वहन करते थे । मण्डन के द्वारा लिखे एव लिखवाये गये ग्रन्थो की प्रतियो मे प्रदत प्रशस्तियों से ज्ञात होता है कि मण्डन विक्रम की पन्द्रहवी शताब्दी तक जीवित थे । २
मण्डन ने अनेक ग्रन्थो की रचना की है जिनमे से निम्न ग्रन्थ प्रकाश में आए हैं - (१) कादम्बरी दर्पण, (२) चम्पूमण्डन, (३) चन्द्रविजयप्रबन्ध,
श्रीमालवं शोन्नते
१ श्रीमद्वन्यजिनेन्द्रनिर्भरतते श्रीमदानन्दनस्य दधत श्रीमण्डrrear कवे । काव्ये कौरवपाण्डवोदयकथारम्ये कृतौ सद्गुणे माधुर्यं पृष्ठ काव्यमण्डन इते सर्गोऽयमाद्योऽभवत् ।।
- काव्यमण्डन, प्रथम सर्ग --अन्तिम प्रशस्ति । २ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनन्दन ग्रन्थ, 'मत्रीमंडन और उनका गौरवशाली वंश'
-पृ० १२८, १३४ ॥