SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्याय : मैन-बालकारिक और मकार १३ गुणवान शिष्य कौन है ? इसके उत्तर में हेमचन्द्र ने रामचन्द्र का नाम लिया था। रामचन्द्र अपनी असाधारण प्रतिभा एवं कवि-कर्म कुशलता के कारण 'कविकटारमल्ल' की सम्मानित उपाधि से अलंकृत थे। यह उपाधि उन्हे सिवराज जयसिह ने प्रसन्न होकर प्रदान की थी। इसका उल्लेख रत्नमदिरगणि-गुम्फित उपदेशतरगिणी में इस प्रकार मिलता है कि एक बार जयसिंहदेव ग्रीष्म ऋतु मे क्रीडोद्यान जा रहे थे, उसी समय मार्ग मे रामचन्द्र मिल गये। उन्होने रामचन्द्र से पूछा कि, ग्रीष्म ऋतु मे दिन बड़े क्यो होते हैं ? इसके उत्तर में उन्होने (तत्काल पद्य-रचना करके) निम्न पद्य काहा--- देव श्रीगिरिदुर्गमल्ल भवतो दिग्त्रयात्रोत्सवे, धावद्धीरतुरगनिष्ठुरखुरक्षुण्णक्षमामण्डलात् । वासोद्ध तरजो मिलत्सुरसरित्स जातपकस्थली दूर्वाचुम्बनचञ्चुरा रविहयास्तेनाति वृद्ध दिनम् ॥ यह सुनकर सिद्धराज द्वारा पुन 'तत्काल पत्तन-नगर का वर्णन करो' यह कहे जाने पर उन्होने निम्न पद्य की रचना की एतस्यास्य पुरस्य पौरवनिताचातुर्यता निजिता, मन्ये नाथ । सरस्वती जडतया नीर वहन्ती स्थिता । कीर्तिस्तम्भमिषोच्चदण्डरुचिरामुत्सूश्य वाहावलीतन्त्रीका गुरुसिद्धभूपतिसरस्सुम्बी निजा कच्छपीम् ।। १ राज्ञा श्रीसिद्धराजेनान्यदा नुयुयुजे प्रभु । भवता कोऽस्ति पट्टस्य योग्य शिष्यो गुणाधिक ॥ -प्रभावकचरित-हेमसूरिप्रबन्ध, पद्य १२६ । २ माह श्री हेमचन्द्रस्य न कोऽप्येव हि चिन्तक । आद्योप्यभूदिलापाल सत्पात्राम्भोधिचन्द्रमा । सज्ज्ञानमहिमस्थैर्य मुनीना किं न जायते । कल्पद मसमे राशि त्वयीहशि कृतस्थिती ॥ मस्त्यामुष्यायको रामचन्द्राख्य कृतिशेखर । मातरेख प्रातरूप संधे विश्वकलानिधि ॥ वही, १३१-१३३ ३. ब्रष्टव्य-उपदेशतरंगिणी, पृ० ६३ ।
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy