SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कामाखात माय गाये बाते ) १२) बर्मकारचूडामणि मामक वृत्ति और (३) बिक गायक टीका। इन सीनों के पिता भाचार्य हेमचन्द्र ही है। यह ग्रन्थ माउ भयानों में सिमक्त है। प्रथम अध्याय में काम्प-प्रयोजन, काव्य-हेतु, कवि-समय, काव्य-शक्षण, गुण-दोष का सामान्य लक्षण, अलंकार का सामान्य लक्षण, बलकारी के ग्रहण और त्याग का नियम, शब्दार्थ-स्वरूप, लक्ष्य और व्यग्य वर्ष का स्वरूप, शब्दशक्तिमूलक-व्यंग्य मे नानार्थ निबन्धन, मर्यशक्तिमूलव्यंग्य के वस्तु और बलकार इन दो भेदो तथा इसके पद वाग्य और प्रबन्ध के अनेक भेदो का विवेचन किया गया है। साथ ही अर्थशक्त्युभव-ध्वनि के स्वतः सभवी, कविप्रोटोक्तिमात्रनिष्पन्न शरीर, इन अथवा कविनियववस्तृप्रोटोक्तिमाननिष्पन्न -शरीर इन भेदो के कथन को अनुचित बताया गया है। द्वितीय अध्याय मे रस-स्वरूप, रस के भेद-प्रभेद तथा उनका सोदाहरण लक्षण-निरूपण, स्थायिभाव और व्यभिचारिभावो की गणना एवं उनका सोदाहरण लक्षण, आठ साविक-भावो की गणना तथा काव्यभेदो का विवेचन किया गया है। तृतीय अध्याय मे दोष का विशेष लक्षण, आठ रसदोषो, १३ वाक्यदोषों और उभय, (पद-बाक्य) दोषो तथा अर्थदोषो का सोदाहरण विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय मे माधुर्य, प्रसाद और ओज इन तीन गुणो के सभेद मक्षण और उदाहरण तथा तत्-सत् गुणो मे आवश्यक बों का मुम्फन किया है । पचम अध्याय में अनुप्रास, यमक, चित्र, श्लेष, वक्रोक्ति और पुनरुक्तवदाभास शब्दालंकारो के सभेद लक्षण और उदाहरणो का विवेचन किया गया है। षष्ठ अध्याय मे उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, निदर्शना, दीपक, मन्योक्ति, पर्यायोक्त, प्रतियोक्ति, माक्षेप, विरोष, सहोक्ति, समासोक्ति, जाति (स्वभावोक्सि) व्याजस्तुति, श्लेष, व्यतिरेक, अर्थान्तरन्यास, ससन्देह, अपहनुति, परिवृत्ति, अनुमान, स्मृति, भ्रान्ति, विषम, सम, समुच्चय, परिसंख्या, कारणमाला और शंकर, इन २६ बर्थालंकारीका विवेचन किया गया है। बतब बन्याय में नायक का स्वरूप, उसके माठ सात्विकगुणों का सोबाहरण बाण, मायक के पार भेव, उनका सोदाहरण स्वरूप, नायक के अवस्था मेव और उनका सोहरकण, प्रतिनायक, नायिका भव, उसकी स्वाधीन
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy