________________
बावापो का बलकारमान वे योगदान
आचार्य हेमचन्द्र के नाम से प्रतिष्ठा प्राप्त की । उनकी मृत्यु वि० सं० १२९९ में
आचार्य हेमचन्द्र ने व्याकरण, कोश, छन्द, मलकार, दर्शन, पुरा, इतिहास आदि विविध विषयो पर सफलतापूर्वक साहित्य सृजन किया है। शब्दानुशासन, काव्यानुशासन, छन्दोनुशासन, दयाश्रय महाकाव्य, योगशाल, द्वात्रिशिकाएं, अभिधान-चिन्तामणि तथा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ये उनकी प्रमुख रचनाएं हैं।
इस प्रकार आचार्य हेमचन्द्र एक साथ कवि, कथाकार, इतिहासकार, एवं मालोचक थे। वे सफल और समर्थ साहित्यकार के रूप मे प्रख्यात हुए हैं। पाश्चात्य विद्वान् डा. पिटर्स ने उनके विद्वतापूर्ण ग्रन्थों को देखकर उन्हे 'ज्ञानमहोदधि' जैसी उपाधि से अलकृत किया है । काव्यानुशासन
काव्यानुगासन आचार्य हेमचन्द्र का अलकार विषयक एकमात्र ग्रन्थ है। इसकी रचना वि० स० ११६६ के लगभग हुई है। इसमे सूत्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। काव्य प्रकाश के पश्चात् रचे गये प्रस्तुत ग्रन्थ में ध्वन्यालोक, लोचन, अभिनव भारती, काव्य-मीमासा और काव्य-प्रकाश से लम्बे-लम्बे उद्धरण प्रस्तुत किए गए है। जिससे कुछ विद्वान इसे सग्रह अन्य की कोटि मे मानते हैं, किन्तु उनकी कुछ नवीन मान्यताओ का प्रस्तुत ग्रन्थ मे विवेचन मिलता है । आचार्य मम्मट ने कुल ६७ अलंकारो का उल्लेख किया है, किन्तु हेमचन्द्र ने मात्र २६ अलंकारो का उल्लेख कर शेष का इन्ही में अन्तर्भाव किया है। मम्मट ने जिस अल कार को अप्रस्तुतप्रशसा नाम दिया है, उसे हेमचन्द्र ने "अन्योक्ति" नाम से अभिहित किया है। मम्मट काव्य प्रकाश को १० उल्लासो में विभक्त करके भी उतना विषय नही दे पाये हैं, जितना हेमचन्द्र ने काम्यानुशासन के केवल बघ्यायो मे प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही हेमचन्द्र ने अलकार-शास्त्र में सर्वप्रथम नाट्य विषयक तत्वों का समावेश कर एक नवीन परम्परा का प्रनयन किया है, जिसका अनुसरण परवर्ती आचार्य विश्वनाथ आदि ने भी किया है।
१ जैन साहित्य का बृहए इतिहास, भाग ६, पृ. ७६ । २ हेमचन्द्राचार्य का शिष्य मण्डल, पृ०४। ३ जैन साहित्य का वृहद् इतिहास, भाग ५, पृ.१००।