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प्रथम जम्मा :
(महावीर स्वामी की प्रतिमा मोना से युक्त थी, जिसके तेज से कान्त और सूर्यकान्त सि को मना फीकी पड़ गई थी।
वाचार्यबाट
समुच्चनाकार के उदाहरण में निम्न चीन रत्नों का उल्लेख किया है- (१) अर्थहिल्लपाटनपुर नामक नगर, (२) राजा कर्णदेव के सुपुत्र - राजा जयसिंह और (३) श्रीकलश नामक हाथी । मह निश्चित हो जाता है कि आचार्य वाग्मट-प्रथम चालुक्यवशीय कर्णदेव के पुत्र राजा जयसिंह के समकालीन थे । राजा जयसिंह का राज्य काल वि० सं० ११५० से १९९९ (१०९३ ई० से ११४३ ई०) तक माना जाता है । बत" वाग्म-प्रथम का भी यही काम प्रतीत होता है । इसकी पुष्टि प्रभावक परित के इस कथन से भी होती है कि वि० सं० १९७८ मे मुनिवर के समाfuमरण होने के एक वर्ष पश्चात् देवसूरि के द्वारा बाहर (वाट) ने मूर्ति प्रतिष्ठा कराई । तात्पर्य यह कि उस समय वाग्भट विद्यमान थे। अस वाग्भट का समय उक्त राजा जयसिंह का ही काल युक्तियुक्त मालूम होता है । अब तक उपलब्ध प्रमाणो के अनुसार उनका एक मात्र आलंकारिक ग्रन्व वाग्भटासकार ही प्राप्त है ।
वाग्भटालंकार
मटाकार एक बहुचर्चित कृति है। इसकी संस्कृत टीकाएँ जैन विद्वानो
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प्रभावक चरित-वादिदेवसूरि परित ६७-७० ।
२ अणहिल्लपाटल पुरमवनिपति कर्मदेवनृपसूतु ।
श्री शनामधेय करी व जगतीह रत्नानि ।। वाग्भटालंकार, ४।१३२१
ऐ जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३२० ।
गणेश त्र्यबक देशपांडे ने वाग्भट का लेखन काल हिर० ११२२ से ११५६ माना है। -भारतीय साहित्य-शास्त्र, पृ० १३५ ।
४ शतेकादशके साष्टसप्ततो विक्रमार्फत 1 वत्सराणां व्यतिक्रान्ते श्रीमुदिचन्द्रसूरय ॥ - आराधनाविभिधष्ठ कृत्वा प्रायोपवेशनम् । रामपोलोम्वास्ते त्रिदिन वपुः ॥ यत्सरे तत्र बैंक पूर्णे श्रीदेवसूरिभिः । श्रीवीरस्य प्रतिडांस बायो कारयन्मुदा ॥
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७१-०७३ ।