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'जैनाचार्यों का अलकारशास्त्र में योगदान के अतिरिक्त जैनेतर विद्वानो द्वारा भी लिखी गई हैं । वाग्भटालंकार पर लिखी गई उपलब्ध एव भनुपलब्ध कुल टीकाओ की संख्या लगभग १७ है। इतनी अधिक टीकाओ से ही इस ग्रन्थ की महत्ता सिद्ध हो जाती है कि यह कितना लोकप्रिय अन्य रहा है।
वाग्भटाल कार को ५ परिच्छेदो मे विभाजित किया गया है। इसके प्रथम परिच्छेद मे मगलाचरण के पश्चात् काव्य-स्वरूप, काव्य प्रयोजन, काध्यहेतु, काव्य मे अर्थ-स्फूर्ति के पाच हेतु-मानसिक आह्लाद, नवनवोन्मेषशालिनी बुद्धि, प्रमातवेला, काव्य-रचना मे अभिनिवेश और समस्त शास्त्रों का अनुशीलन आदि का निरूपण किया गया है । तत्पश्चात् कवि-समय का वर्णन किया गया है, इसके अन्तर्गत् लोको और दिशाओ की संख्या निर्धारण, यमक, श्लेष और चित्रालंकार में ब और व, ड और ल आदि में अभेद, चित्रबन्ध के अनुस्वार और विसर्ग की छूट आदि का सोदाहरण वर्णन किया गया है।
द्वितीय परिच्छेद में सर्वप्रथम काव्य-शरीर का निरूपण करते हुए बतलाया गया है कि संस्कृत, प्राकृत, उस (सस्कृत) का अपभ्रश और पैशाची ये चारो भाषाएं काव्य का अग होती हैं। काव्य के भेद, काव्य-दोष और उसके भेदो का अन्त मे विवेचन किया गया है।
तृतीय परिच्छेद मे बौदार्य, समता आदि दस गुणो का सोदाहरण लक्षण प्रस्तुत किया गया है। कुछ गुणो का लक्षण और उदाहरण एक ही पद्य मे दिया गया है। यद्यपि वाग्भटाल कार में सर्वत्र पयो का प्रयोग किया गया है, किन्तु ओजगुण का उदाहरण गद्य मे प्रस्तुत किया है।
चतुर्थ परिच्छेद मे सर्वप्रथम अल कारों की उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है । पुन चिनादि चार शब्दालंकारी और जाति आदि पैतीस अर्यालकारो का सोदाहरण लक्षण निरूपण किया गया है । इसके साथ ही यत्र-तत्र अलकारो के भेदोपभेदो का भी सोदाहरण वर्णन किया है । तत्पश्चात् गौडीया और वैदर्भी इन दो रीतियो का सोदाहरण लक्षण प्रस्तुत किया गया है।
पचम एव अन्तिम परिच्छेद मे रस-स्वरूप, सभेद शृङ्गारादि नौ रस और उनके स्थायी भाव, मनुभाव तथा भेदो का निरूपण किया गया है। प्रसंगवशात् बीच में नायक के चार भेद और उनका स्वरूप, नायिका के चार भेद और उनका स्वरूप आदि का वर्णन किया गया है। आचार्य हेमचन्द्र
आचार्य हेमचन्द्र बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न विद्वान थे। उनकी साहित्य