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________________ जनाचायों का बलकारशास्त्र में योगदान मटको अभिनव वाग्भट अथवा वाग्भट द्वितीय के नाम से अभिहित किवक्र जाता है । डॉ० वेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य ने नेमिनिर्वाण-काव्य के कर्ता को वाग्भट प्रथम कहा है । किन्तु आधुनिक विद्वान सामान्यतः वारमटालंकार के कर्त्ता को वाग्भट - प्रथम ओर काव्यानुशासन के कर्ता को वाग्भट द्वितीय मानते हैं । आचार्य वाग्भट का प्राकृत नाम बाहड तथा पिता का नाम सोम था यह एक कुशल कवि और किसी (जयसिंह राजा के) राज्य के महामात्य वे प्रभावक - चरित में वाहड के स्थान पर थाहड का प्रयोग किया गया है" । इनको प्रभावक चरित के अन्य कई स्थलों पर भी थाहड नाम से अभिहित किया गया है । वाग्भट प्रथम धनवान् और उच्चकोटि के श्रावक थे, एक बार इन्होने गुरुचरणो मे निवेदन किया कि मुझे किसी प्रशमनीय कार्य मे धन व्यय करने की आज्ञा दीजिए। उसके उत्तर में गुरुदेव ने जिनमदिर बनवाने व्यय किए गए धन को सफलीभूत बतलाया था, तदनन्तर गुरु के आदेशानुसार वाग्भट ने एक भव्य जिनालय का निर्माण कराया था, जो हिमालय के सदृश श्वेत, उत्तुग और बहुमूल्य मणिओ वाले कलश से सुशोभित था । उसमे विराजमान वर्धमान १ तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा, खण्ड चतुर्थ, पृ० २२ । २ वाग्भट - विवेचन - आचार्य प्रियव्रत शर्मा, पृ० २८२ । ३ यभण्डसुत्तिसपुड - मुक्तिअ मणिगोपहासमूह ब्ब । सिरि बाहडति तणओ आसि बुहो तस्य सोमस्य ॥ - वाग्भटालकार, ४१४५ ४ बभण्डसुत्तिसपुड - इत्यादि पद्य की उत्थानिका मे लिखा है - इदानों ग्रन्थकार इदमलकारकर्तृ स्वख्यापनाय वाग्भटामिषस्य महाकवेर्महामात्यस्य तन्नाम गाथेकया निदर्शयति । सिंहदेवगण टीका --- वाग्भटाल कार ४१४८, आचार्य हेमचन्द्र ने वाग्भट को जयसिंह का अमात्य कहा है । -इयाश्रय महाकाव्य, २०१६१-६२ । धार्मिकाग्रणी । विज्ञापनामसी ॥ · ५ अथासित थाहडो नाम धनवान् गुरुपादान् प्रणम्याय चक्र वत्सरे तत्र चैकत्र पूर्णे श्रीदेवसूरिभि । श्री वीरस्य प्रतिष्ठां सा बाहडोऽकारयन्मुदा ॥ - प्रभावकचरित-वादिदेवसूरिचरित ६७, ७३
SR No.010127
Book TitleJainacharyo ka Alankar Shastro me Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamleshkumar Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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