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(८) उपवास न करने का भाव हेय है और उपवास करने का भाव उपादेय है। (६) कुगुरु की भक्ति का भाव हेय है और गुरु की भक्ति का भाव उपादेय है । (१०) कुदेव के दर्शन का भाव हेय है और देव के दर्शन का भाव उपादेय है (११) १२ अणुव्रतादि पालने का भाव हेय है और १२ अणुव्रतादि पालने का भाव उपादेय है। (१२) २८ मूलगुण पालने का भाव उपादेय है और २८ मूलगुण न पालने का भाव हेय है। " इत्यादि मान्यताओ को आस्रवतत्त्व सम्बन्धी जीव की भूल बताया है ||१|| · अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे श्रद्धान को अगृहीत मिथ्यादर्शन बताया है ॥२॥ " अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे ज्ञान को अगृहीत मिथ्याज्ञान बताया है ॥३॥ अनादिकाल से एक-एक समय करके चला आ रहा होने से ऐसे आचरण को अगृहीत मिथ्याचारित्र बताया है॥४॥ · वर्तमान में विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरु-कुदेव-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के श्रद्धान को गृहीत मिथ्यादर्शन बताया है।॥५॥ वर्तमान मे विशेषरुप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरुकुदेव-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के ज्ञान को गृहीत मिथ्याज्ञान बताया है। वर्तमान में विशेषरूप से मनुष्यभव व दिगम्बर धर्म धारण करने पर भी कुगुरु-कुदेव-कुधर्म का उपदेश मानने से ऐसी-ऐसी मान्यताओ के आचरण को गृहीत मिथ्याचारित्र बताया है ।।७।।
प्र० १६-आसव तत्व सम्बन्धी जीव की भूल रूप अगृहीत-गृहीत मिथ्यादर्शनादि का अभाव होकर सम्यग्दर्शनादि की प्राप्ति कर क्रम से पूर्ण सुखोपना कैसे प्रगट होवे-इसका उपाय छहढाला की दूसरी ढाल मे क्या बताया है ?
उ०-चेतन को है उपयोगरुप, विनमूरत चिन्मूरत अनूप । पुद्गल