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उत्तर - जिस प्रकार सूर्य तथा सर्व दीपक है, वे मार्ग को एकरुप ही प्रकाशित करते है, उसी प्रकार दिव्यध्वनि तथा सर्व ग्रन्थ है, वे मोक्षमार्ग को एकरुप प्रकाशित करते है । सो यह मोक्षमार्ग प्रकाशक भी मोक्षमार्ग को प्रकाशित करता है [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ १६ ] प्र० १७ - इस जीव का मुख्य कर्तव्य क्या है ?
उत्तर - ( १ ) इस जीव का तो मुख्य कर्त्तव्य आगम ज्ञान है । (२) उसके होने से तत्त्वो का श्रद्धान होता है । (३) तत्त्वो का श्रद्धान होने से सयम भाव होता है । ( ४ ) और उस आगम ज्ञान से आत्म ज्ञान की भी प्राप्ति होती है । (५) तब सहज ही मोक्षमार्ग की प्राप्ति होती है । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २० ]
प्र०१८ - निमित्तनैमितिक क्या बताता है ?
उत्तर- तथा इस बन्धान मे कोई किसी को करता तो है नही । जब तक बन्धान रहे - विछेडे नही और कारण -कार्यपना उनके बना रहे । इतना ही यहा बन्धान जानना । सो मूर्तिक- अमूर्तिक के इस प्रकार बन्धान होने मे कुछ विरोध है नही । [ मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ २४]
प्र० १६ - घात का क्या अर्थ है ?
उत्तर - शक्ति की व्यक्तता नही हुई, अत शक्ति अपेक्षा स्वभाव है । उसका व्यक्त न होने देने की अपेक्षा घात किया कहते है । [ मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ २५ ]
प्र० २० - जीव के जीवत्वपने का निश्चय किस से होता है ?
उत्तर- उन कर्मो का क्षयोपशम से जितने ज्ञान-दर्शन- वीर्य प्रगट है | वह उस जीव के स्वभाव का अश ही है । कर्म जनित औपाधिक भाव नही है । सो ऐसे स्वभाव के अश का अभाव नही होता है। इस ही के द्वारा जीव के जाता है । [ मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ २६ ]
अनादि से लेकर कभी जीवत्व का निश्चय