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________________ ( २५१ ) प्र० २१-बन्ध का कारण कौन है ? उत्तर-पर द्रव्य बन्ध का कारण नहीं होता। उनमे आत्मा को ममत्वादिरुप मिथ्यात्वादि भाव होते है वही बन्ध का कारण जानना। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ २७] प्र० २२-कर्म और जीव के विषय मे क्या जानना चाहिये ? उत्तर-जीव का कोई प्रदेश कर्मरुप नही होता और कर्म का कोई परमाणु जीवरुप नहीं होता। अपने-अपने लक्षण को धारण किये भिन्न-भिन्न ही रहते है । [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ २४] प्र० २३-घातिया कर्मों का बन्ध कब तक होता ही रहता है ? उत्तर--शुभयोग हो अशुभयोग हो, सम्यक्त्व प्राप्त किये बिना घातिया कर्मों की तो सर्व प्रकृतियो का निरन्तर बन्ध होता ही रहता है किसी समय किसी भी प्रकृति का बन्ध हुये बिना नही रहता है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक] प्र० २४-मनुष्य जीवन का अर्थ क्या है ? उत्तर-हेय-उपादेय-ज्ञेय का सच्चा ज्ञान-यह मनुष्य जीवन है । प्र० २५-हेय-ज्ञेय-उपादेय से क्या तात्पर्य है ? उत्तर-मुझ आत्मा ज्ञायक और विश्व व्यवहार से ज्ञेय । (२) मैं ज्ञायक और ज्ञानपर्याय ज्ञेय । (३) ऐसा भेद भी नहीं है । बस जायकज्ञायक। प्र० २६-आत्मा का पता कैसे चले ? उत्तर-द्रव्यकर्म, नोकर्म और भावकर्म से अपने को भिन्न जाने तो आत्मा का पता चले। प्र० २७-केवलज्ञान कैसे प्रगट होता है ? उत्तर-आत्मा मे केवलज्ञान शक्तिरुप से है। उस शक्तिवान द्रव्य का पूर्ण आश्रय लेने से पर्याय मे केवलज्ञान तेरहवे गुणस्थान मे प्रगट होता है।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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