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( २४६ ) लौकिक कार्य घटाने का प्रयोजन है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १३] प्र० १२-जिन धर्म क्या है ?
उत्तर-सर्व कषायो का जिस-तिस प्रकार से नाश करने वाला है वह जिन धर्म है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १२]
प्र० १३-नवीन श्रोता कैसा होता है ?
उ०-(१) मै कौन हूँ ? मै कैलाश चन्द्र नाम धारी शरीर नही हूँ। मै तो ज्ञान-दर्शन का धारी ज्ञायक आ. मा है। (२) मेरा स्वरुप क्या है ? ज्ञाप्ति क्रिया मेरा कार्य है । (३) यह चरित्र कैसे बन रहा है ? सुबह उठना, खाना-पीना, व्यापार करना आदि कार्य सर्वथा पुद्गल के ही है। इनसे मेरा किसी भी अपेक्षा किसी भी प्रकार का सर्वथा सम्बन्ध नही है । (४) ये मेरे भाव होते है, उनका क्या फल लगेगा ? ये शुभाशुभविकारी भाव एक मात्र चारो गतियो के परिभ्रमण का ही कारण है । (५) जीव दुखी हो रहा है, सो दुख दूर करने का क्या उपाय है ? जैसा पदार्थो का स्वरुप है वैसा श्रद्धान हो जावे तो सर्व दु ख मिट जावे । मुझको इतनी बातो का निर्णय कर के कुछ मेरा हित हो सो करना-ऐसे विचार से जो उद्यमवन्त हुआ है-यह नवीन श्रोता का स्वरुप है। मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ १७]
प्र० १४-सच्चा श्रोता कैसा होता है ?
उत्तर-जो आत्म ज्ञान द्वारा स्वरुप का आस्वादी हुआ है वह जिन धर्म के रहस्य का श्रोता है। क्योकि आत्म ज्ञान हो बिना जिन धर्म का रहस्य किसी को समझ मे नही आ सकता है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १८]
प्र० १५-जिनवाणी का क्या आदेश है ?
उत्तर-उचित शास्त्र को उचित वक्ता होकर वाचना, उचित श्रोता होकर सुनना योग्य है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १८]
प्र० १६-मोक्षमार्ग प्रकाशक क्या प्रकाशित करता है ?