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( २४८ ) प्र०८-श्रद्धानी जैनी अन्यथा क्या नही जानते हैं ?
उत्तर--जिनको अन्यथा जानने से जीव का बुरा हो ऐसे देवगुरू-धर्मादिक तथा जीव-अजीवादिक तत्वो को तो श्रद्धानी जैनी अन्यथा जानते ही नहीं। क्योकि इनका तो जैन शास्त्रो मे प्रसिद्ध कथन है । [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १४]
प्र० -कसे शास्त्रों का बांचना-सुनना ही उचित है ?
उत्तर--जो शास्त्र मोक्षमार्ग का प्रकाश करे, वही शास्त्र वाचने-सुनने योग्य है। ... ... " सो मोक्ष मार्ग एक वीतराग भाव है । इसलिये जिन शास्त्रो मे किसी प्रकार राग-द्वेप-मोह भावी का निषेध करके वीतराग भाव का प्रयोजन प्रगट किया हो उन्ही शास्त्रो का वांचना-सुनना उचित है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १४] प्र० १०-वक्ता कैसा होना चाहिये ।
उत्तर-(१) जैन श्रद्धान मे द्रढ हो। (२) जिसे विद्याभ्यास करने से शास्त्र वॉचने, योग्य बुद्धि प्रगट हुई हो। (३) सम्यग्ज्ञान द्वारा सर्व प्रकार के व्यवहार-निश्चयादिरुप व्याख्यान का अभिप्राय पहिचानता हो। (४) जिसे आज्ञा भग करने का भय बहुत हो। (५) जिसको शास्त्र बाचकर आजीविका आदि लौकिक कार्य साधने की इच्छा न हो। (६) जिसके तीन क्रोध-मान नहीं हो। (७) स्वय नाना प्रश्न उठाकर स्वय ही उत्तर दे। यदि स्व्य मे उत्तर देने की सामर्थ्य न हो तो ऐसा कहे कि इसका मुझे ज्ञान नहीं है । (७) जिसके अनीतिरुप लोक निद्य कार्यों की प्रवृत्ति न हो । (8) जिसका कुल हीन न हो, अगहीन न हो, स्वर भग न हो, मिष्ट वचन हो तथा प्रभुत्व हो । ऐसा वक्ता होना चाहिये। (१०) सुगुरु ही के उपदेश को कहने वाला उचित श्रद्धानी श्रावक उससे धर्म सुनना योग्य है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ १५ से १७ तक मे से]
प्र० ११-जैन शास्त्री का प्रयोजन क्या है ? उत्तर-जैन शास्त्रो के पदो मे तो कषाय मिटाने का तथा