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( २४७ ) अन्य किस किस शास्त्र मे है ? ___ उत्तर-(१) प्रवचनसार मे १७२वी गाथा है। (२) नियमसार मे ४६वी गाथा है । (३) पचास्तिकाय मे १२७वी गाथा है। (४) अष्टपाहुड (भाव पाहुड) मे ६४वी गाथा है। (५) धवला ग्रन्थ तीसरे भाग मे यह गाथा है। (६) पद्मनन्दी पच विशति मे भी यह गाथा है । (७) लघु द्रव्य संग्रह मे भी यह गथा है ।
प्र० ४-केवली क्या जानते है ?
उत्तर-अनन्त ज्ञान द्वारा तो अनन्त गुण-पर्याय सहित समस्त जीवादि द्रव्यो को युगपत् विशेपपने से प्रत्यक्ष जानते है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ २]
प्र० ५-सिद्ध भगवान के दर्शन से क्या लाभ होता है ?
उत्तर-जिनके ध्यान द्वारा भव्य जीवो को स्वद्रव्य (निज जीवतत्त्व का) परद्रव्य का (अजीवतत्त्व का) और औपाधिक भाव (आस्रवबन्ध, पुण्य-पाप) स्वभाव भावो का (सवर-निर्जरा और मोक्ष का) विज्ञान होता है । जिसके द्वारा उन सिद्धो के समान स्वय होने का साधन होता है। इसलिये साधने योग्य जो अपना शुद्ध स्वरुप उसे दर्शाने को प्रतिविम्ब समान है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ट ३]
प्र० ६-प्रयोजन किसे कहते है ? । उत्तर-जिसके द्वारा सुख उत्पन्न हो तथा दुख का विनाश होउस कार्य का नाम प्रयोजन है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक पृष्ठ ६]
प्र. ७-सासारिक प्रयोजन के लिये भक्ति करने से क्या होता
उत्तर-इस प्रयोजन के (सासारिक कार्यो के) हेतु अरहतादिक की भक्ति करने से भी तीव्र कपाय होने के कारण पाप बन्ध ही होता है। इसलिए अपने को (मोक्षार्थी को) इस प्रयोजन का अथि होना योग्य नही है। अरहतादि की भक्ति करने से ऐसे प्रयोजन तो स्वयमेव ही सिद्ध होते है। [मोक्ष मार्ग प्रकाशक]