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( २३२ ) क्षयोपशम-क्षय जिसका निमित्तकारण है-ऐसे चार भाव है, और जिसमे कर्मोपाधिरुप निमित्त किचित मात्र नहीं है, मात्र द्रव्य स्वभाव ही जिसका कारण है-ऐसा एक पारिमाणिक भाव है (२) औपशमिकादि चार भाव पर्यायरुप है और पारिणामिक भाव पर्याय रहित है। (३) इसलिये चार भावो मे पारिणामिक भाव नहीं आता है।
प्र० ३४३ -पारिणामिकादि पांच भावो का स्पष्ट वर्णन कहाँ देखें?
उत्तर-जैन सिद्धानत प्रवेग रत्नमाला भाग चार मे देखियेगा।
प्र० ३४४-इन पांच भावों को 'परम' और 'अपरम' क्यो कहा जाता है ?
उत्तर-(१) पारिणामिकभाव त्रिकाल शुद्ध और परम है, इसलिये शुद्ध पारिणामिक भाव को 'परम भाव' कहते है, क्योकि इसके आश्रय से ही शुद्ध पर्याय प्रगट-वृद्धि और पूर्णता होती है। (२) दूसरे औपशमिकादि चार भावो को 'अपरम' भाव कहते है क्योंकि इनके आश्रम से जीव मे अशुद्ध पर्याय प्रगट होती है।
प्र० ३४५-समस्त कर्मरुपी विष वृक्ष को उखाड़ फैकने मे कौनसा भाव समर्थ है ?
उ०-परमभाव पारिणामिक त्रिकाल शुद्ध है। यह परमभाव ही समरत कर्मरुपी विप वृक्ष को उखाड फैकने में समर्थ है।
प्र० ३४६-इस गाथा मे 'सत्वे सुद्धा ह सुद्धणया" से क्या तात्पर्य है ?
उ०-शुद्धनय से सभी जीव वास्तव मे शुद्ध है । यहाँ सुद्धनय का अर्थ द्रव्याथिकनय है-इस दृष्टि से देखने पर सभी जीव शुद्ध ज्ञायक भाव के धारक है।
प्र० ३४७-इस गाथा मे अशुद्धनय का वर्णन क्या बतलाने के लिये किया गया है ?