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नय से जीवद्रवद्ध एक स्वभाव वाले है । तो भी पश्चात् अशुद्धनय से चौदह मार्गणा स्थान और चौदह गुणस्थान सहित होते है - इस प्रकार प्रतिपादन करते है "।
प्र० ३३८ - शुद्ध द्रव्यार्थिक और अशुद्धनयो का विषय एक ही साथ होने पर भी ( प्रथम ) शुद्ध द्रव्यार्थिकनय और 'पश्चात् अशुद्धनय ऐसा क्यों कहा है ?
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उत्तर - (१) शुद्ध द्रव्यार्थिकनय का विषय एक ही आश्रय करने योग्य है, क्योकि उसके आश्रय से ही जीव के धर्मरूप शुद्ध पर्याय प्रगट होती है और उसी के आश्रय से ही वृद्धि करके पूर्णता की प्राप्ति होती है । ( २ ) अशुद्धनय के विषय के आश्रय से जीव के अशद्ध पर्याय प्रगट होती है, इसलिये उसका आश्रय छोडने योग्य है । ( ३ ) ऐसा बताने के लिये शास्त्रो मे शुद्ध द्रव्यार्थिकनय को प्रथम और अशुद्धनय व्यवहारनय को पश्चात् कहा गया है।
प्र० ३३६- शुद्ध पारिणामिक भाव का क्या अर्थ है ?
उत्तर - पारिणामिक का अर्थ सहज स्वभाव है । उत्पाद व्यय रहित ध्रुव एक रुप स्थिर रहने वाला पारिणामिक भाव है ।
प्र० ३४० - पारिणामिक भाव किस जीव को होता है ?
उत्तर - निगोद से लगाकर सिद्ध दशा तक सभी जीवो मे 'त्रिकाल (अनादि अनन्त) ध्रुबरूप से शक्तिरुप से शुद्ध है - यह होता है । कहा गया है कि " पारिणामिक भाव के विना कोई जीव नही है" ।
प्र० ३४१ - क्या पारिणामिक भाव मे बाकी चार भाव नही है ? उत्तर- नही है, क्योकि औदयिक - औपशमिक क्षायोपशमिक और क्षायिक इन चार भावो से जो रहित जो भाव है- सो पारिणामिक भाव है ।
प्र० ३४२ - पारिणामिक भाव मे औपशमिक आदि चार भाव क्यो नही आते है ?
उत्तर -- ( १ ) औपशमिकादि चार भावो मे उदय-उपशम