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प्र० १६७-गाथा ४ से ६ तक मे व्यवहार किसे कहा और निश्चय किसे कहा है ?
उत्तर- दर्शनोपयोग के चार और ज्ञानापयोग के आठ भेदों को व्यवहार कहा है और 'शुद्ध दर्शन ज्ञान' को निश्चय कहा है ।
प्र० १६८ - द्रव्यसग्रह की तीसरी गाथा मे किसे व्यवहार कहा और किसे निश्चय कहा है ?
उत्तर - दस जड प्राणो को व्यवहार कहा है और शुद्ध चेतना प्राण को निश्चय कहा है ।
प्र० १६६ - उपयोग अधिकार में सम्यक् श्रुत प्रमाण और नय किस प्रकार है।
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उत्तर- (१) ज्ञान दर्शन के मेदो को और शुद्ध दर्शन ज्ञान त्रिकाली को एक साथ जानना सम्यक् श्रुत प्रमाण है । (२) ज्ञान-दर्शन के भेदों को गौण करके 'शुद्ध दर्शन ज्ञान' त्रिकाली को जानना वह निश्चश्यनय है । ( ३ ) 'शुद्ध दर्शन-ज्ञान' त्रिकाली को गौण करके ज्ञान-दर्शन के भेदो को जानना वह व्यवहारनय है ।
प्र० १७० - मिथ्यादृष्टि के कुमति कुश्रुत-कुअवधि होते है-इस कथन को किस नय से कहेंगे ?
उत्तर - उपचरित असद्भूत व्यवहारनय से
प्र० १७१ - छदमस्थ साधक जीव के मति श्रुत-अवधि मन पर्यय ज्ञान होते है - इस कथन को किस नय से कहेंगे ?
उत्तर - उपचरित सद्भूत व्यवहारनय मे ।
प्र० १७२ - केवली भगवान को केवल दर्शन और केवल ज्ञान है - इस कथन को किस नय से कहेंगे ?
उत्तर- अनुपचरित सद्भूत व्यवहारनय से ।
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प्र० १७३ - उपयोग अधिकार की तीनो गाथा का सार क्या है उत्तर- "शुद्ध दर्शन-ज्ञान' त्रिकाली ज्ञायक का आश्रय ले तो