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________________ ( १६३ ) दस उपयोगो मे जितना ज्ञान-दर्शन का अभाव है वह औदयिक भाव मे आते है । तथा गाथा ६ मे "शुद्ध ज्ञान-दर्शन' पारिणामिक भाव मे आता है। प्र० १६४-औपशमिक भाव कहां गया ? उत्तर-ज्ञान-दर्शन-वीर्य मे औपशमिक भाव नहीं होता है। उपयोग जीव का लक्षण है अट्ठचदुणाण दसण सामण्ण जीव लक्खण भणिय । व्यवहारा शुद्धणया शुद्ध पुण दसण णाण ।। ६ ।। अर्थ -(व्यवहारा) व्यवहार नय से (अट्ठचदु णाण दसण) आठ प्रकार का ज्ञान और चार प्रकार का दर्शन को (सामण्ण) सामान्य (जीव लक्खण) जीव का लक्षण (भणिय) कहा गया है । (पुण) ओर (सुद्धणया) शुद्ध निश्चयनय से (सुद्व दसण णाण) शुद्ध दर्शन और ज्ञान को ही जीव का लक्षण कहा गया है। प्र० १६५-चार दर्शनोपयोग आठ ज्ञानोपयोग के भेदो के लिये छठी गाथा मे 'सामान्य" शब्द क्या बतलाने को कहा है ? उत्तर--इसमे दो कारण है । (१) १२ भेदो मे ससारी और मुक्त का पृथक्-पृथक् कथन न करने के कारण "सामान्य" शब्द कहा है। (२) 'शुद्ध दर्शन-ज्ञान' ऐसा कथन न करके ज्ञान-दर्शनोपयोग के 'सामान्यतया' भेद किये है । अत १२ भेदो मे से यथा सम्भव जिस जीव के जो लागू पडे, वह उस जीव का लक्षण समझना चाहिए। प्र० १६६-गाथा चार से छह तक मे उपयोग का अर्थ क्या समझना चाहिए और क्या नहीं समझना चाहिये ? उत्तर-(१) गाथा चार से छह तक मे 'उपयोग' का अर्थ ज्ञानदर्शन का उपयोग समझना चाहिये। (२) चारित्रगुण की जो शुभोपयोग-अशुभोपयोग-रद्धोपयोग अवस्था है, वह यहा नही समझना चाहिये।
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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