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उत्तर - ज्ञानी ही कह चेतना प्राण का ज्ञान है ।
( १८२ )
सकता है क्योकि उसको अपने निश्चय
प्र० ११२ - अनुपचरित असदभूत व्यवहारनय से जड़ प्राण जीव के है -- इस वाक्य पर निश्चय व्यवहार के दस प्रश्नोत्तर लगाकर समझाइये ?
उत्तर - प्रश्नोत्तर १२३ से १२२ तक नीचे पढियेगा |
प्र० ११३ - कोई चतुर कहता है मै चेतना प्राण हु-ऐसे निश्चयनय का श्रद्धान रखता हूं और मैं दस प्राण वाला हू - ऐसे अनुपचरित असदभूत व्यव्हारनय की प्रवृत्ति रखता हू । परन्तु आपने हमारे निश्चय व्यवहार दोनो को झूठा बता दिया तो हम निश्चय -व्यवहार दोनो नयो को किस प्रकार समझे तो हमारा माना हुया निश्चयव्यवहार सत्यार्थ कहलावे ?
उत्तर—मै चेतना प्राण वाना हूँ-ऐसा जो शुद्ध निश्चयनय स निरुपण किया हो उसे तो सत्यार्थ मानकर उसका श्रद्वान अगीकार करना और मै दस प्राण वाला हूँ - ऐसा जो अनुपचरित असद्भूत व्यवहार से निरुपण किया हो उसे असत्यार्थ मानकर उसका श्रद्धान छोड़ना ।
प्र० ११४ - मै दस प्राण वाला हू - ऐसे अनुपचरित असदभूत व्यवहारनय के त्याग करने का और मै चेतना प्राण वाला हू- ऐसे शुद्ध निश्चयनय के अगीकार करने का आदेश कही जिनवाणी मे भगवान अमृतचन्द्राचार्य ने दिया है ?
उत्तर—समयसार कलश १७३ मे आदेश दिया है कि ( १ ) मिथ्यादृष्टि की ऐसी मान्यता है कि - शुद्ध निश्चयनय से मैं चेतना प्राण वाला हूँ और अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से मै दस प्राणो वाला है - यह मिथ्या अध्यवसाय है और ऐसे-ऐसे समस्त अध्यवसानो को छोडना, क्योकि मिथ्यादृष्टि को निश्चय व्यवहार