________________
( १०५ )
तत्त्व का ज्यो का त्यो श्रद्वान' बताया है ।
प्र० ४६ - जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो ने 'अजीवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' क्या बताया है ?
उत्तर- ( १ ) जिनमे ज्ञान दर्शन न हो वे अजीव द्रव्य है और वे पाच है- पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । ( २ ) जिनमे मेरा ज्ञान दर्शन नही है वे अजीवतत्त्व है । मुझ निज आत्मा के अलावा अनन्त जीवद्रव्य, अनन्तानन्त पुद्गल द्रव्य, धर्म-अधर्म - आकाश एकेक द्रव्य और लोक प्रमाण असख्यात काल द्रव्य है ये सब अजीवतत्व है । (३) जिसमे स्वर्ग - रस- गन्ध-वर्ण पाया जा वे वह पुद्गल द्रव्य है । उसमे स्पर्श की आठ पर्याये, रस की पाच पर्याये, गन्ध की दो पर्याये, वर्ण की पाच पर्याये और शब्द की सात पर्याये, इस तरह २७ प्रकार की पर्याये होती है । ( ४ ) इन २७ पर्यायो से जीवतत्व का किसी भी अपेक्षा किसी भी प्रकार का सर्वथा सम्बन्ध नही है, क्योकि जीव अस्पर्श अरस, अगन्ध, अवर्ण और अगव्द स्वभावी है । (५) जीवपुद्गल जब अपनी-अपनी क्रियावती शक्ति से स्वयं स्वत गमन रुप परिणमते है तव धर्म द्रव्य निमित्त होता है । (६) जीव- पुद्गल जब अपनी-अपनी क्रियावती शक्ति से स्वयं स्वत चलकर स्थिर होते है तव अधर्म द्रव्य निमित्त होता है । ( ७ ) सर्व द्रव्य अनादिकाल से अपने-अपने क्षेत्र मे रहते है, उसमे आकाश द्रव्य निमित्त है । ( 5 ) सर्व द्रव्य निज परिणमन स्वभाव के कारण स्वयं स्वत परिणमते है, उसमे काल द्रव्य निमित्त है । ( 8 ) मुझ निज आत्मा का इन सव अजीव तत्वो से सर्वथा सम्बन्ध नही है, क्योकि इनकी चाल मुझ जीव तत्त्व से भिन्न ही है । (१०) अजीवतत्व से सर्वथा भिन्न अपने को आप रुप जानकर पर का अश भी अपने मे न मिलाना और अपना अश भी पर मे न मिलाना । यह 'अजीवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' जिन जिनवर और जिनवर वृपभो ने बताया है ।