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________________ ( १०६ ) प्र० ४७ - जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'अजीवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' के जानने से क्या लाभ रहा ? उत्तर - अनन्त ज्ञानियों का एक मत है - ऐसा पता चलता है । प्र० ४८ - जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'अजीवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' को सुनकर ज्ञानी क्या जानते है और क्या करते है ? उत्तर - केवली के समान अजीवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान करते है, जानने मे मात्र प्रत्यक्ष-परोक्ष का अन्तर रहता है। अजीवतत्व से सर्वथा भिन्न निज ज्ञान-दर्शन उपयोगमयी जीवतत्त्व मे विशेष एकाग्रता करके परमात्मा बन जाते है । प्र० ४६ - जिन-जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित, 'अजीवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' को सुनकर सम्यक्त्व के सन्मुख पात्र भव्य मिथ्यादृष्टि जीव क्या जानते है और क्या करते है ? 1 उत्तर- अहो | अहो | जिन-जिनवर और जिनवर वृपभो से कथित, 'अजीवतत्व का ज्यो का त्यो श्रद्वान' महान उपकारी है, मुझे तो इसका पता ही नही था। अजीव तत्त्व से सर्वथा भिन्न निज ज्ञानदर्शन उपयोगमयी जीवतत्व का आश्रय लेकर वहिरात्मपने का अभाव कर अन्तरात्मा बनकर ज्ञानी की तरह विशेष एकाग्रता करके परमात्मा वन जाते है | प्र० ५०- जिन जिनवर और जिनवर वृषभो से कथित 'अजीवतत्व का ज्यों का त्यों श्रद्धान' सुनकर दीर्घ ससारी मिथ्यादृष्टि क्या जानते है और क्या करते है उत्तर- जिन-जिनवर और निजवर वृपभो से कथित, 'अजीव तत्व का ज्यो का त्यो श्रद्धान' का विरोध करते है और मिथ्यात्व की
SR No.010123
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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