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पांव भी धरती पे जिसने है कभी रखे नही। वन मे भटकते वो फिरे आपत्ति आ जाने के बाद ।।३।। बोलते जव लौं सगे हैं चार पैसा पास मे । नाम भी पूछे नही पैसा निकल जाने के बाद ॥४॥ स्वार्थ प्यारा रह गया, असली मुहब्बत उठ गई। भूल जाता माँ को बछडा पय निकल जाने के वाद ॥५॥ भाग जाता हस भी निरजल सरोवर देखकर । छोड देते वृक्ष पक्षी पत्र झड जाने के बाद ॥६॥ लोग ऐसे मतलबी फिर क्यो करे विश्वास हम। बाल डरता आग से इक बार जल जाने के बाद ॥७॥ इस अथिर ससार मे क्यो मग्न कुन्दन हो रहा । देख फिर पछतायेगा असमर्थ हो जाने के बाद ।।।।
३८. तर्ज-एक परदेसी मेरा' . कुन्द-कुन्द आचार्य कह गये जो निज आत्म को ध्यायेगा। पर से ममता छोडेगा, निश्चय भव से तिर जावेगा ॥टेका क्रिया काड मे धर्म नही है, पर से धर्म नही होगा नही होगा। निज स्वभाव के रमे बिना नही, किंचित धर्म कभी होगा कभी
होगा । शुद्ध चेतना रूप जीव का धर्म वस्तु मे पायेगा, पर से ॥१॥ निज स्वभाव के साधन से ही,सिद्ध प्रभु बन जावेगा,बन जावेगा। बाह्य भाव शुभ-अशुभ सभी से, जग मे गोते खावेगा, गोते
खावेगा। मुक्ति चाहने वाला तो निज से निज गुण प्रगटावेगा,पर से" · ॥२॥ जीव मात्र ऐसा चाहते है, दुख मिट जावे सुख आवे, सुख आवे । करते रहते है उपाय जो, अपने अपने मन भावे, अपने मन
भावे ।।