________________
(१३५ ) राग द्वेष परभाव तजेगा, वो निश्चय सुख पायेगा,पर से.......॥३॥ पर पदार्थ नही खोटा चोखा, नही सुख दुख देने वाला, देने वाला। इष्ट-अनिष्ट की मान्यता से ही, मूर्ख भटकते मतवाला,
मतवाला ।। सभी जीव निज पर विवेक से शुद्ध चिदानन्द पायेगा,पर से... ॥४॥
३६. भैया फसे मत विपयो मे मन कहना मेरा मान ॥ टेक ।। मैथुन इन्द्री के वश हस्ती, झूठी हथिनी लखि होय मस्ती। पडे गडे में आन, फसै मत विषयो मे मन कहना मेरा मान ॥१॥ रसना के वश मछली आवे, काँटे से निज पाठ छिदावे । खोवै अपनी जान,फस मत विपयो में मन कहना मेरा मान ।।२।। भौंरा सू धन हेत सुगन्धी, बैठि कमल मे होता बन्दी। मूढ गंवावै प्राण,फस मत विषयो मे मन कहना मेरा मान ॥३॥ नयन विषय वश होय पतगा, दीपक माहि जलावे अगा। तजै प्राण अज्ञान, फस मत विषयो मे मन कहना मेरा मान।।४|| कर्ण विषय वश सर्प विपिन मे बीन सुनत हरणे निज मन मे। गहे शिकारी आन,फस मत विपयो मे मन कहना मेरा मान ॥५॥ एक-एक वश हम दुख पावै, तो पॉचो की कौन चलावे । समझि अरे नादान, फसे मत विषयो मे मन कहना मेरा मान ॥६॥ 'भैया' पाँचो को जो त्यागे,विपय भोग मे कभी ना लागे । बो ही पुरुष महान,फसे मत विपयो मे मन कहना मेरा मान ॥७
समय उठ चेत रे चेन, भरोसा है नही पल का। खडी मुख फाडकर मृत्यु, भरोसा है नही पल का । ॥टेक। वालपन खेल मे खोया, जवानी नीद भर सोया। बुढापे मे बढी तृष्णा हुआ, नही बोझ भी हलका ॥१॥