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(१३३ ) अब निज बैन सुने श्रवजन ते, मिटे विभाय फग्य विधि तसे ॥४॥ ऐसा अवसर कठिन पाय अव, निज हित हेत विलम्चन करे से। पछतावो बहु होय सयाने, चेतन 'दौलत' जुटो भव भय मे ||
३६. शिवराम जाना नहिं निज आत्मा, ज्ञानी हुए तो क्या हुये । च्याया नही शुद्ध मात्मा, च्यानी हुए तो क्या हुये ।।टेक॥ अन्य सिद्धान्त पढ लिये, शाल्ली महान बन गये। मात्मा रहा वहिरात्मा, पडित हुए तो क्या हुए ॥१॥ 'पच महानत आदरे, घोर तपस्या भी करी । मन की कपायें ना मरी, साधु हुए तो क्या हए ॥२॥ माला के दाने हाध मे। मनुआ फिरे बाजार में। मन की न माला फिरे, जपिया हुये तो क्या हए ॥३॥ गाकर बजाकर नाचकर, पूजा भजन सदा किये । निज ध्येय को सुमिरो नहीं, भक्ति हुए तो क्या हुए ॥४॥ मान बहाई कारने, दाम हजारो सरचते । भाई तो भूखों मरे, दानी हुये तो क्या हुए ॥५॥ करें न जिनवर दर्श को, सेवन करें अभक्ष को। 'दिल मे जरा दया नही, जैनी हुये तो क्या हुए।।६।। दृष्टि न अन्तर फेरते, औगुन पराये हेरते । 'शिवराम' एक ही नाम के, सामर हुए तो क्या हुए ॥७॥
३७. गजल तन नही छता कोई चेतन निकल जाने के बाद। फैक देते फूल ज्यो खुशबु निकल जाने के बाद ॥टेका। आज जो करते फिलोलें खेलते हैं साथ मे। कल डरेगे देख तन निरजीव हो जाने के बाद ॥१॥ बात भी करते नही जो आज धन की ऐंठ में वे मांगते आये नजर तकदीर फिर जाने के बाद ॥२॥