________________
( ११३ )
बोली नारि इसे पढि आमौ तव पीछे घर मे आना, पढा पाप का बाप न जिसने वो पडित किसने माना ||४itसुनि नारी की बात चला ब्राह्मण पढने विद्यालय मे, किन्तु मिला न पढाने वाला विद्यप्रदेश हिमालय मे। शहर शहर और ग्राम ग्राम मे फिरता फिरता हारा है, एक दिना एक बडी चतुर वेश्या ने इसे निहारा है ॥५॥करि प्रणाम बोलो वेश्या तुम कौन कहाँ से आये हो, नौजवान सुन्दर खुबसूरत क्यो इतने घबराये हो। सुनि वेश्या की बात विप्र ने सारा किस्सा बतलाया, सब कुछ पढा न पढा पाप का बाप उसे पढने आया ॥६॥ बोली वेश्या ये पुस्तक है मेरे पास पढा दूंगी, आओ मेरे चौबारे पर अभी तुम्हे समझा दूंगी। तू वेश्या मैं ब्राह्मण होकर तेरे घर नही आऊँगा, चाहै पढ़ न पढ़ किन्तु तुझसे शिक्षा नही पाऊँगा ॥७॥ नही नहीं आऔ भगवन् सौ रुपये भेट चढाऊँगी, तुम्हे पढाने से मैं पापिनि भी पवित्र हो जाऊँगी। सुनत नाम सौ रुपये का ब्राह्मण को लालच आता है, खट खट खट खट वेश्या के चीबारे 4 चढि जाता है। ले अब मुझे पढा दे जल्दी वहुत समय न लगाऊँगा, लेकरि सौ रुपये की थैली मैं अपने घर जाऊँगा। अजी जरा कुछ खा तो लो पीछे मै पाठ पढाऊँगी, सौ रुपये क्या देहु तुम्हे ढाई सौ भेटि चढाऊँगी ।।६।। हाय हाय रडी के घर क्या मैं खाने को खाऊँगा, धर्म कर्म सब बिगडि जाय दुनियाँ मे भ्रष्ट कहाऊँगा। बोली वेश्या डरौ नही सूखा सामान मगा दूंगी, आप बनाकर पहले खालो तब मैं पीछे खाऊँगी ॥१०॥