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लगता और न दूसरो की आवश्यकता रहती, इसलिये यथार्थ समझ सुलभ है। __ यथार्थ ज्ञान प्राप्त करने की रुचि के अभाव मे ही जीव अनादिकाल से अपने स्वरूप को नहीं समझ पाया, इसलिये आत्म स्वरूप समझने की रुचि करो और ज्ञान करो, ऐसा वीतरागी सन्तो का उपदेश है।
[वस्तु विज्ञानसार से]
(३४) पाप का बाप कौन है।
(अनुवादक-पं० मक्खन लाल)
लोभ पाप का बाप बखाना ये सब सुनते आते हैं, उसका एक अनूपम हम तुमको दृष्टान्त सुनाते है। एक विप्र का पुत्र बनारस से पढि करि आया था, चारो वेद पुराण अठारै काठ याद कर लाया था ॥१॥ तर्क छन्द व्याकरण कोष का पूरा पडित ज्ञानी था, वैदिक ज्योतिष सामुद्रिक मे औरन जिसकी शानी था। एक दिना नारी यो बोली प्राणनाथ यहा आऔ तो, क्या-क्या पढिआये काशी से मुझको जरा सुनाऔ तो॥२॥ बोला तर्क छन्द व्याकरणादिक सब ही पढि आया हूँ, हुआ परीक्षोत्तीर्ण सभी मे अब्बल नम्बर लाया हू। कहा नारि ने ऐसे कहने से तो मैं नही मानू गी, कौन पाप का बाप बताओ तब मैं पडित जानूंगी ॥३॥ लगे सिटपिटाने पडितजी ये तो पढा नही मैंने, नही किसी ने मुझे सिखाया बात नई पूछी तैने ।