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का तीर्थकर होगा-ऐसा हमने श्रीधर तीर्थंकर के मुख से सुना है। इसलिये हे भव्य । तू मिथ्यामार्ग निवृत हो और आत्महितकारी ऐसे. सम्यकमाग मे प्रवृत हो। ___ महावीर का जीव सिंह मुनिराज के वचन से तुरन्त ही प्रतिबोधित हुआ। उसने अत्यन्त भक्ति से वारवार मुनियो की प्रदक्षिणा की और उनके चरणो मे नम्रीभूत हुआ। रौद्ररस के स्थान मे तुरन्त ही शान्त रस प्रगटकिया। और उसने तत्क्षण ही सम्यक्त्व प्राप्त किया इतना ही नहीं, उसने निराहारव्रत भी धारण किया । अहा । सिहका शूर वीरपना सफल हुमा । शास्रकार कहते है कि उस समय उसने ऐसा धार पराक्रम प्रकट किया कि यदि तिर्यच पर्याय मे मोक्ष होता तो अवश्य ही वह मोक्ष पा जाता | सिहपर्याय मे समाधिमरण करके वह सिंहकेतु नाम का देव हुआ।
वहाँ से घातकी खण्ड के विदेह क्षेत्र मे कनकोज्वल नाम का राजपुत्र हुआ, अव धर्म के द्वारा वह जीव मोक्ष की नजदीक मे पहुच रह था। वहा वैराग्य से सयम धारण करके सातवे स्वर्ग मे गया। वहा से साकेतपुरी (अयोध्या) मे हरिपेण राजा हुआ और सयमी होकर के स्वर्ग मे गया। फिर धातको खण्ड मे पूर्व विदेह को पुडरीकिणी नगरी मे प्रियमित्र नाम का चक्रवर्ती राजा हुआ क्षेमकर तीर्थंकर के सान्निध्य मे दीक्षा ली और सहन्नार स्वर्ग में सूर्य प्रभदेव हुआ। वहाँ से जवुद्वीप के छत्तरपुर नगर मे नन्दराजा हुआ और दिक्षा लेकर उत्तम सयम का पालन कर, ११ मग का ज्ञान प्रगट करके, दर्शनविशुद्धि प्रधान सोलह भावनाओ के द्वारा तीर्थकर नाम कर्म बाधा और ससार का छेद किया, उत्तम आराधना सहित अच्युपस्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान मे इन्द्र हुआ। - वहाँ से चयकर महावीर का वह महान आत्मा, भरत क्षेत्र मे वैशाली के कुण्डलपुर के महाराजा सिद्धार्थ के यहाँ अन्तिम तीर्थकर के रूप में अवतरित हुआ-प्रियकारिणी माता के यह वर्द्धमान पुत्र ने चैत्र शुक्ल १३ के दिन इस भरतभूमि को पावन की। इस वीर वर्द्ध