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________________ ( ८८ ) पुद्गलाश्रित हैं और कितने ही जीवाश्रित है । जीव के यथावत् विशेपण जाने तो मिथ्यादृष्टि न रहे। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० २२१] (ए) सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की एकतारूप मोक्षमार्ग वह ही मुनियो का सच्चा लक्षण है । उसकी पहिचान हो जावे तो मिथ्यादृष्टि रहे नही। मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० २२३] (ऐ) वीतरागी शास्त्रो मे अनेकान्तरूप सच्चे जीवादि तत्वो का निरूपण है और सच्चा रत्नत्रय रूप मोक्षमार्ग दिखलाया है उसीसे जैन शास्त्रो की उत्कृष्टता है। उसकी पहिचान हो जावे तो मिथ्यादृष्टिपना रहता नही। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० २२४] (ओ) सर्व प्रकार प्रसिद्ध जानकर विपरीताभिनिवेश रहित ' जीवादि तत्वार्थो का श्रद्धान सो ही सम्यक्त्व का लक्षण है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृ० ३३२] (औ) जो वास्तव मे अरहन्त देव को द्रव्यरूप से, गुणरूप से और पर्यायरूप से जानता है, वह वास्तव मे आत्मा को जानता है। उसी समय त्रिकाली आत्मा को समझ लेने वाला जीव चिदविवर्तो (पर्याय) को ही चेतन (द्रव्य) मे ही अन्तर्गत करके, चैतन्य (गुण) को चेतन (द्रव्य) मे ही अन्तर्हित करके केवल आत्मा को जानता है। उसको कर्ता, कर्म, क्रिया का विभाग क्षय को प्राप्त हो जाने से निष्क्रय (रागरहित) चिन्मात्र भाव (निर्विकल्प दशा) को प्राप्त हो जाता है यह सम्यग्दर्शन है। यह निर्विकल्प तथा निष्क्रिय दशा है। प्रवचनसार गा० ८०] (अ) ज्ञेय अधिकार मे सम्यक्त्व की व्याख्या करी हैतम्हा तस्स णमाई किच्चा णिच्चपि तं मणो होज्ज । वोच्छामि संग हादो परमठ्ठ विणिच्छयाधिगमं ॥१॥ अर्थ-क्योकि सम्यग्दर्शन के बिना साधु होता ही नही है। इस कारण से उस सम्यक्त्व सहित सम्यकचारित्र से युक्त साधु को नमस्कार करके नित्य ही उन साधुओ को मन मे धारण करके
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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