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________________ ( ८७ ) (ऐ) लाख बात की बात यही, निश्चय उर लाओ। तोरि सकल जग दन्द-फन्द, नित आतम ध्यावो । [छहढाला चौथी ढाल] (ओ) निश्चय धर्म तो मात्र वीतरागभाव है यह ही धर्म है यह जिनागम का सार है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २३३] (औ) मिथ्यात्व ही ससार है सम्यक्त्व ही मोक्ष है। [सर्व शास्त्रो का रहस्य १६. सम्यग्दर्शन (अ) विपरीताभिनिवेशरहित जीवादिक तत्वार्थश्रद्धान वह सम्यग्दर्शन का लक्षण है । जीव, अजीव, आस्रव, बध, सवर, निर्जरा, मोक्ष यह सात तत्त्वार्थ है । इनका जो श्रद्धान ऐसा ही है, अन्यथा नही है, ऐसा प्रतीतिभाव सो तत्वार्थश्रद्धान तथा विपरीताभिनिवेश जो अन्यथा अभिप्राय उससे रहित सो सम्यग्दर्शन है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३१७] (आ) जो तत्वार्थ श्रद्धान विपरीताभिनिवेश रहित है वही सम्यग्दर्शन है। (ई) विपरीताभिनिवेश से रहित जीव अजीवादि तत्वार्थो का श्रद्धान सदाकाल करने योग्य है यह श्रद्धान आत्मा का स्वरूप है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३२०] (इ) सम्यग्दर्शनरूप श्रद्धान का बल इतना है कि केवली सिद्ध भगवान रागादिरूप परिणमित नही होते, ससार अवस्था को नही चाहते। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३२४] (उ) सच्चा तत्वार्थ श्रद्धान, व आपा पर का श्रद्धान व आत्मश्रद्धान व देव, गुरु, धर्म का श्रद्धान यह सम्यक्त्व का लक्षण है इन सर्व लक्षणो मे परस्पर एकता भी है। [मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३२६] (क) श्री अरहन्त देव के जो गुण कहे है उनमे कितने तो विशेपण
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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