________________
६. भवितव्य (अ) अज्ञानी मिश्यादृष्टि जीव, आप स्वय अथवा अन्य सचेतनअचेतन पदार्य किसी प्रकार परिणमित हुए, अपने को वह परिणमन बुग लगा, तब अन्यथा परिणमन करके उस परिणमन का बुरा चाहता है, परन्तु उनका परिणमन उसके आधीन नहीं है। इस प्रकार योध से दुरा करने की इच्छा तो हो, परन्तु बुरा होना या न होना भवितव्य के आधीन है।
(आ) अन्य कोई अपने से उच्च कार्य करे तो उसे किसी उपाय से नीचा दिमाता है और स्वय नीना कार्य करे तो उसे उच्च दिखाता है। इस प्रकार मान से अपनी महतता की इच्छा तो हो, परन्तु महतता होना भवितव्य आधीन है।
(इ) छल-कपट द्वारा अपना अभिप्राय सिद्ध करना चाहता है। इस प्रकार माया से इप्ट सिद्धि के अर्थ छल तो करे, परन्तु इष्ट सिद्धि होना भवितव्य आधीन है।
(E) लोभ से इष्ट प्राप्ति की इच्छा तो बहुत करे, परन्तु इष्ट प्राप्ति होना भवितव्य के आधीन है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३६) (उ) श्री गीमसार कर्मकाण्ड मे पाँच प्रकार के एकान्तवादियो का कथन आता है उनका आशय (गाथा ८७६ से ८८३) इतना ही है कि इनमें से किसी एक से कार्य की उत्पत्ति मानता है वह मिथ्यादृष्टि है और जो कार्य की उत्पत्ति में इन पांचो के (स्वभाव, पुरुपार्थ, काल, नियति और कर्म) समवाय को स्वीकार करता है वह सम्यग्दृष्टि है। पण्डित बनारसीदास जी ने नीचे पद के अनुसार इसी तथ्य की पुष्टि की है
पद सुभाव पूरब उदै निहच उद्यम फाल पच्छपात मिथ्यात्व पथ, सरवगी शिवचाल ॥४१॥