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( ७३ ) तथा अष्ट सहस्त्री पृष्ठ २५७ मे अकलक देव ने कहा है .
तादृशी जायते बुद्धि, र्व्यवसायश्च तादृशः । __ सहायास्तादृशाः सन्ति, यादृशी भवितव्या ॥ अर्थ-जिस जीव की जैसी भवितव्यता (होनहार) होती है उसकी वेसी ही बुद्धि हो जाती है। वह प्रयत्न भी उसी प्रकार का करने लगता है और उसे सहायक भी उसके अनुसार मिल जाते है। इस श्लोक मे भवितव्यता को मुख्यता दी गई है।
प्रश्न-भवितव्यता क्या है ?
उत्तर-जीव की समर्थ उपादान शक्ति का नाम ही तो भवितव्यता है।
प्रश्न-भवितव्यता का व्युत्पत्ति अर्थ क्या है ?
उत्तर-भवितु योग्य भवितव्यम्, तस्य भावः भवितव्यता।" अर्थात् जो होने योग्य हो उसे भवितव्य कहते है और उसका भाव भवितव्यता कहलाती है।
प्रश्न-भवितव्यता के पर्यायवाची शब्द क्या-क्या हैं ?
उत्तर-योग्यता, सामर्थ्य, शक्ति, पात्रता, लियाकत, ताकत यह सब भवितव्यता के पर्यायवाची शब्द हैं ?
(जैनतत्वमीमासा पृष्ठ ६५-६६) (ऊ) यदि इनकी सिद्धि हो तो कपाय का उपशमन होने से दुख दूर हो जावे, सुखी हो, परन्तु उनकी सिद्धि इसके किये उपायो के आधीन नही है। भवितव्य के आधीन है, क्योकि अनेक उपाय करते देखते हैं, परन्तु सिद्धि नही होती, तथा उपाय होना भी अपने आधीन नहीं हैं, भवितव्य के आधीन है, क्योकि अनेक उपाय करने का विचार करता है और एक भी उपाय नही होता है, तथा काकतालीय न्याय से भवितव्य ऐसा ही हो जैसा अपना प्रयोजन हो, वैसा ही उपाय हो,
और उससे कार्य की सिद्धि भी हो जावे । तो उस कार्य सम्बन्धी किसी कषाय का उपशम हो।"
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५६)