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सभी बुरा
योग्या सर्व प्रकारचाय है।
( ७१ ) (ए) इस भव तरू का मूल एक मिथ्यात्व भाव है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २६३) (ऐ) इस मिथ्यात्व वैरी का अश भी बुरा है इसलिए सूक्ष्म मिथ्यात्व भी त्यागने योग्य है। (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ १६३)
(ओ) सर्व प्रकार के मिथ्यात्वभाव को छोडकर सम्यग्दृष्टि होना योग्य है क्योकि ससार का मूल मिथ्यात्व है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ २६७) (ओ) मिथ्यात्वभाव को छोडकर अपना कल्याण करा।।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ १९२) (अ) यही भाव दु खो के वीज है, अन्य कोई नहीं। इसलिये हे भव्य । यदि दुखो से मुक्त होना चाहता है तो इन मिथ्यादर्शनादिक विभावभाव का अभाव करना ही कार्य है, इस कार्य के करने से तेरा परम कल्याण होगा।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ६४) (अ) मिथ्यात्व कर्म अत्यन्त अप्रशस्त है। (श्री धवल)
(क) सुख का कारण स्वभाव प्रतिघात का (द्रव्य-भाव घाति कर्म का) अभाव है।
(प्रवचनसार गा० ६१ की टीका)(ख) इस जीव का प्रयोजन तो एक यही है कि दुख न हो सुख हो।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ७८) (ग) मोक्षमार्ग के प्रतिपक्षी जो मिथ्यादर्शनादिक उनका स्वरूप वताया। उन्हे तो दुःखरूप, दुख का कारण जानकर, हेय मानकर उनका त्याग करना मोक्ष के मार्ग जो सम्यग्दर्शनादिक है उन्हे सुखरूप, सुख का कारण जानकर, उपादेय मानकर, अगीकार करना, क्योकि आत्मा का हित मोक्ष ही है।
(घ) दुख न हो सुख हो, तथा अन्य भी जितने उपाय करते हैं वे सव इसी एक प्रयोजन सहित करते है दूसरा प्रयोजन नही ।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३०६)