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( ७० ) (ऐ) सम्यग्दृष्टि के मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय ना होने से उसे इस प्रकार के भावास्रव तो होते ही नही और मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबन्धी कषाय सम्बन्धी बन्ध भी नही होता है।
(समयसार गा० १७३ से १७६ तक भावार्थ पृष्ठ २७०) __ (ओ) बन्ध के होने मे मुख्य कारण मिथ्यात्व अनन्तानुवन्धी का उदय ही है अनन्त ससार का कारण मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धी ही है उसका अभाव हो जाने पर फिर उनका बन्ध नही होता वृक्ष की जड कट जाने पर फिर हरे पत्तो की अवधि कितनी ?
(समयसार कलश १६२ का भावार्थ पृष्ठ ३५६-३५७)
८. प्रयोजन और सब दुःखो का मूल मिथ्यात्व (अ) जिसके द्वारा सुख उत्पन्न हो तथा दु ख का विनाश हो उस कार्य का नाम प्रयोजन है । (मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ६)
(आ) बाह्य अनुकूल सामग्री मिले यह प्रयोजन नही है क्योकि इस प्रयोजन से (अनुकूल सामग्री से) कुछ भी अपना हित नहीं होता।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ८) (इ) सर्व दुखो का मूल यह मिथ्यादर्शन है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५१) (ई) सर्व बाह्य सामग्री मे इष्ट-अनिष्टपना मानता है, अन्यथा उपाय करता है, सच्चे उपाय की श्रद्धा नहीं करता, अन्यथा कल्पना करता है सो इन सबका मूल कारण एक मिथ्यादर्शन है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ५१) (उ) सब दुखो का मूल कारण मिथ्यादर्शन, अज्ञान और असयम है । मिथ्यादर्शनादिक है वे ही सर्व दुखो का मूल कारण है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ४६) (अ) मिथ्यात्व को सप्त व्यसन से भी बड़ा पाप कहा है।
(मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ १६१)