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दर्शन मोह का उपशम तो स्वयमेव होता है । उसमे जीव का कर्तव्य कुछ नही । (मोक्षमार्ग प्रकाशक पृष्ठ ३१४)
७. मिथ्यात्व ही आस्रव है और सम्यक्त्व हो सवर - निर्जरा, मोक्ष हैं
(अ) वास्तव मे मिथ्यात्व ही आसव है ।
( समयसार नाटक पृष्ठ १५३ आश्रवाधिकार ) (आ) प्रगट हो कि मिथ्यात्व ही आस्रव-बन्ध है और मिथ्यात्व का अभाव सम्यक्त्व सवर- निर्जरा तथा मोक्ष है ।
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( समयसार नाटक पृष्ठ ३१० मोक्षद्वार ) (इ) सिद्धान्य मे मिथ्यात्व को ही पाप कहा है; जब तक मिध्यात्व रहता है तब तक शुभाशुभ सर्व क्रियाओ को अध्यात्म मे परमार्थत पाप ही कहा जाता है ।
( समयसार कलश १३७ के भावार्थं मे पृष्ठ ३०७ ) (ई) मिथ्यात्व सम्बन्धी बन्ध जो कि अनन्त ससार का कारण है वही यहाँ प्रधानतया विवक्षित है अविरति आदि से जो बन्ध होता है वह अल्प स्थिति - अनुभाग वाला है दीर्घ ससार का कारण नही है । ( समयसार गा० ७२ के भावार्थ मे पृष्ठ १३३)
( उ ) संसार का कारण मिथ्यात्व ही है, इसलिए मिध्यात्व सवधी रागादि का अभाव होने पर, सर्व भावास्रवो का अभाव हो जाता है यह यहाँ कहा गया है । (समयसार कलश ११४ के भावार्थ मे पृष्ठ २६१ ) (ऊ) मिथ्यात्व सहित राग को ही राग कहा है, मिथ्यात्व रहित चारित्र मोह सम्बन्धी परिणाम को राग नही कहा ।
( समयसार कलश १३७ के भावार्थ पृष्ठ ३०८ ) (ए) मिथ्यात्व है सो ही ससार है । मिथ्यात्व जाने के बाद ससार का अभाव ही होता है समुद्र मे एक बूंद की गिनती ही क्या है ?
( समयसार गा० ३२० के भावार्थ पृष्ठ ४५४)