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( ६० ) ही मोक्षमार्ग है। (२) निश्चय-व्यवहार दोनो को उपादेय मानता है, जवकि मात्र निश्चय उपादेय है आदि बातो से मिथ्यात्व की पुष्टि करता है।
प्रश्न-तीनो प्रकार के भासियो की मिथ्या मान्यता कैसे टले ?
उत्तर--"जबै जाने निहलै के भेद-व्यवहार सब कारण को उपचार माने, तब बुद्धता" निश्चय-व्यवहार को जानकर अपने स्वभाव का आश्रय ले तो मिथ्याभासीपने का अभाव हो, तब धर्म की प्राप्ति हो। (ऐ) शिव उपाय करते प्रथम, कारन मंगल रूप। विधन विनाशक सुख करन, नमो शुद्ध शिवभूप ॥१॥
[मोक्षमार्गप्रकाशक पृष्ठ ३०६] अर्थ-शिव उपाय अर्थात मोक्ष का उपाय करते समय पहले उसका कारण और मगल रूप, शुद्ध शिवभूप को नमस्कार करना चाहिये, क्योकि वह विघ्न विनाशक और सुख करने वाला है।
भावार्थ-शुद्ध शिवभूप व्यवहारनय से सिद्ध भगवान है और निश्चयनय से अपना त्रिकाली आत्मा ही है । जो कि सर्व विशुद्ध परम पारिणामिक, परम भाव ग्राहक, शुद्ध उपादान भूत, शुद्ध द्रव्याथिक नय से निज जीव ही है जो कि कर्तृत्व-भोक्तृत्व रहित तथा वध-मोक्ष के कारण और परिणाम से रहित (शून्य) है । उसको प्राप्ति एक मात्र शक्तिवान के आश्रय से ही होती है, किसी पर भगवान या शुभ भाव से कभी भी नही । इसलिए अपने परम पारिणामिक ज्ञायक आत्मा का आश्रय लेकर सवर निर्जरारूप मोक्षमार्ग की प्राप्ति कर, पूर्ण मोक्ष का पथिक बनना ही जैनधर्म का सार है।
२. द्रव्य गुणो का स्वतन्त्र परिणमन (अ) जीव द्रव्य, उसके अनन्त गुण, सव गुण असहाय, स्वाधीन, सदाकाल, ऐसा वस्तु स्वरूप है।
(आ) अब इनकी व्यवस्था "न ज्ञान चारित्र के आधीन है, न