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( ५७ ) इसलिये इनको छोडकर सच्चादेव, गुरु, धर्म को मानना चाहिये यह 'हित का उपाय है। ____ भावार्थ-आत्मा का हित जन्म मरण का अभाव करके परिपूर्ण सुख दशा की प्राप्ति ही है । कुदेव, कुगुरु, कुधर्म की भक्ति से मिथ्या भाव उत्पन्न होता है । इसलिये सत्य क्या है ? उसका यथार्थ निर्णय करके असत्य को छोडकर, सत्य देवादि को ग्रहण करके, उसके उपदेश के अनुसार शुद्धता प्रगट करनी चाहिये, क्योकि वह अपने हित का निमित्त कारण है इसलिये उसका उपाय करना।।
प्रश्न-हम दिगम्बर धर्मी अन्य कुगुरु, कुदेव, कुधर्म को मानते ही नहीं, क्योकि हम बीतरागी प्रतिमा को पूजते हैं, २८ मूलगुणधारी नग्न भालिगी मुनि को मानते हैं और उनके कहे हुए सच्चे शास्त्रो का अभ्यास करते हैं, तो हम किस प्रकार मिथ्यादृष्टि हैं ?
उत्तर-- "सत्तास्वरूप" मे प० भागचन्द्र जी छाजेड ने कहा है दिगम्बर जैन कहते हैं कि 'हम तो सच्चे देवादि को मानते है इसलिये हमारा गृहीत मिथ्यात्व तो छूट गया है। तो कहते हैं कि नही, तुम्हारा गृहीतमिथ्यात्व नहीं छूटा है क्योकि तुम गृहीतमिथ्यात्व को जानते ही नहीं । मात्र अन्य देवादि को मानना ही गृहीतमिथ्यात्व का स्वरूप नही है । सच्चे देव, गुरु, शास्त्र की श्रद्धा बाह्य मे भी यथार्थ व्यवहार जानकर करना चाहिये। सच्चे व्यवहार को जाने विना कोई देवादि की श्रद्धा करे, तो भी वह गृहीतमिथ्यादृष्टि है।
प्रश्न-गृहीतमिथ्यात्व कैसे छूटे ?
उत्तर--वर्तमान मे जो कोई शुभभावो से आत्मा का भला होता है, निमित्त मिले तो कल्याण हो, दूसरे के आश्रय से हमारा भला होता है, आदि खोटी मान्यताओ के उपदेशक की श्रद्धा सब गृहीतमिथ्यात्व मे आते हैं । (१) एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का कुछ कर सकता है, कुछ सहायता आदि करता है आदि उपदेशक गृहीतमिथ्यात्व मे आते है (२) शुभभाव करो, धीरे-धीरे कल्याण हो जावेगा आदि