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________________ ( २६ ) 'कार्य में गलती होती ही है, और वहां वह हास्य का स्थान वन जाता है । उसी प्रकार आप भी मंदबुद्धि वाले हैं अतः इस ग्रन्थ की टीका करने का विचार कर रहे हो तो गलती होगी हो और वहाँ पर हास्य का स्थान बन जाओगे । पर भी ऐसे भूल तो हो अधिक पढा करते हैं कि उत्तर - यह बात तो सत्य है कि मे मदबुद्धि होने महान ग्रन्थ की टीका करने का विचार करता हूँ वहाँ सकती है किन्तु सज्जन हास्य नही करेंगे। जैसे दूसरो से हुआ वालक कही भूल करे तत्र बड़े जन ऐसा विचार 'बालक है भूल करे ही करे, किन्तु अन्य बालको से भला है, इस प्रकार विचार कर हास्य नही करेंगे, उसी प्रकार में यहाँ कही भूल जाऊँ वहाँ सज्जन पुरुष ऐसे विचार करेंगे कि वह मदबुद्धि था सो भूले ही भूले किन्तु कितने ही अतिमद वुद्धि वालो से तो भला है, ऐसे विचार कर हास्य नही करेगे । प्रश्न ४ -- सज्जन तो हास्य नहीं करेंगे, किन्तु दुर्जन तो करेंगे ही ? गुण उत्तर- दुष्ट तो ऐसे ही हैं जिनके हृदय में दूसरो के निर्दोष-भले भी विपरीतरूप ही भासते है किन्तु उनके भय से, जिसमे अपना हित हो-ऐसे कार्य को कौन न करेगा ? प्रश्न ५ - पूर्व ग्रन्थ तो थे ही उन्हीं का अभ्यास करने-करवाने से ही हित होता है, मदबुद्धि ग्रन्थ की टीका करने की महतता क्यों प्रगट करते हो ? उत्तर - ग्रन्थ का अभ्यास करने से ग्रन्थ के टीका की रचना करने में उपयोग विशेष लग जाता है, अर्थ भी विशेष प्रतिभास मे आता है अन्य जीवो को ग्रन्थाभ्यास कराने का सयोग होना दुर्लभ और सयोग होने पर भी किसी जीव को अभ्यास होता है । और ग्रन्थ की टीका बनने से तो परम्परागत अनेक जीवो को अर्थ का ज्ञान होगा । इसलिये स्व-पर अन्य जीवो का विशेष हित होने के लिये टीका करने मे आती है, महतता का तो कुछ प्रयोजन ही नही है ।
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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