SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८ ) __ आचार्यकल्प पंडित प्रवर श्री टोडरमलजी कृत गोम्मटसार-पीठिका मुमुक्षुओं के अति आवश्यक होने से प्रश्नोत्तरों के रूप में में मदबुद्धि (इस ग्रन्थका) अर्थ प्रकाशनेरूप इसकी टीका करने का विचार कर रहा है। __यह विचार तो ऐसा हुआ जैसे कोई अपने मुखसे जिनेन्द्रदेवका सर्वगुण वर्णन करना चाहे तो वह कैसे करे ? प्रश्न १-नहीं बनता, तो उद्यम क्यो कर रहे हो? ___उत्तर-जैसे जिनेन्द्रदेव के सर्वगुण का वर्णन करने की सामर्थ्य नहीं है फिर भी भक्तपुरुष भक्ति के वश अपनी बुद्धि के अनुसार गुणवर्णन करता है, उसी प्रकार इस ग्रन्थ के सम्पूर्ण अर्थ का प्रकाशन करने की सामर्थ्य न होने पर भी अनुराग के-वश मैं अपनी बुद्धि-अनुसार अर्थ का प्रकाशन करूंगा। प्रश्न २~~यदि अनुराग है तो अपनी बुद्धि अनुसार ग्रन्थाभ्यास करो, किन्तु मदबुद्धि वालों को टीका करने का अधिकारी होना उचित नहीं है? उत्तर-जैसे किसी पाठशाला में बहुत बालक पढते हैं उनमे कोई बालक विशेष ज्ञान रहित है फिर भी अन्य वालको से अधिक पढा है तो वह अपने से अल्प पढ़ने वाले बालको को अपने समान ज्ञान होने के लिये कुछ लिख देने आदि के कार्य का अधिकारी होता है। उसी प्रकार मुझे विशेप ज्ञान नहीं है, फिर भी काल दोष से मुझसे भी मदबुद्धि वाले हैं और होगे ही। उन्ही के लिये मुझ समान इस ग्रन्थ का ज्ञान होने के लिये टीका करने का अधिकारी हुआ हूँ। प्रश्न ३-~यह कार्य करना है ऐसा तो आपने विचार किया। किन्तु छोटा मनुष्य बड़ा कार्य करने का विचार करे तो वहाँ पर उसः
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy