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________________ ( 261 ) प्रतीति हो जावेगी, उसी प्रकार तत्वोपदेश का विचार ऐसा निर्मल होने लगा कि जिससे उसको शीघ्र ही उसका श्रद्धान हो जावेगा। प्रश्न २५-क्या फरणलब्धि के परिणाम वचन पम्य है ? उत्तर-नही है। अन्तर मे चैतन्य स्वभाव के सन्मुख होने पर अन्तर मे कोई सूक्ष्म परिणाम हो जाता है वह केवली गम्य है, वचन गम्य नही है। प्रश्न २६-मै फरणलब्धि करूं-करूं क्या ऐसा भाव होता है ? उत्तर-विल्कुल नहीं होता। मैं अध करण करूँ, अनिवृत्तिकरण करूँ ऐसा लक्ष्य नही होता है क्योकि करूंक यह तो स्थूल राग है / परन्तु अन्तर मे आत्म सन्मुख होने पर अध करणादि के परिणाम हो जाते है वह अपनी बुद्धि मे नही आते हैं। प्रश्न २७-अघ.करणादि को अध्यात्मवृष्टि और आगमदृष्टि से क्या कहा जाता है ? उत्तर-अध्यात्मदृष्टि मे आत्म सन्मुख परिणाम कहा जाता है और आगम की दृष्टि से अध करणादि कहे जाते है। जीव के विशुद्ध परिणामो का निमित्त होने पर द्रव्यकर्म का भी स्वय वैसा परिणमन हो जाता है परन्तु जोव का उद्यम तो आत्म सन्मुख परिणाम ही है। प्रश्न २८-करण लब्धि में उपादान-निमित्त क्या है ? उत्तर-आत्म मे सम्यक्त्व के योग्य परिणामो की विशुद्धि उपादान कारण है द्रव्य कर्मों की उस समय पर्याय की योग्यता निमित्त कारण प्रश्न २६-सम्यक्त्व होने पर उपादान-निमित्त क्या है ? उत्तर-आत्मा के श्रद्धागुण की शुद्ध पर्याय प्रगट होना उपादान कारण है दर्शनमोहनीय के उपशमादि निमित्त कारण है। प्रश्न ३०-करणलब्धि के तीन भेद कौन-कौन से हैं ? उत्तर-अघ करण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण यह तीन भेद है। प्रश्न ३१-अधःकरण क्या है ?
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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