________________ ( 260 ) प्रश्न २०-करण लब्धि में कौनसा गुणस्थान है ? उत्तर-पहला मिथ्यात्व गुणस्थान है। दर्शन मोहनीय कर्म का बध होता है। परन्तु वध कम होता है निर्जरा ज्यादा होती हैं तब निविकल्पता होने पर सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है। प्रश्न २१-आगम में अपूर्वकरण लब्धि से जैन क्यो कहा है, जबकि वहाँ पहला गुणस्यान है और निर्जरा क्यो कही है ? उत्तर-अपूर्वकरण में मिथ्यात्व सम्बन्धी रजकण कम आते है और अभाव ज्यादा का होता है। इसी प्रकार अनिवृत्तिकरण मे अपूर्वकरण से ज्यादा मिथ्यात्व कर्म के रजकण खिर जाते है और बहुत कम आते है / कर्म खिरने की अपेक्षा निर्जरा कहने मे आता है तथा अपूर्वकरण होने पर नियम से सम्यग्दर्शन होता ही है। इसलिए आगम मे अपूर्वकरण से जैन कहा है। तथा अपूर्वकरण मे मिथ्या श्रद्धा पतली पड़ जाती है और मिथ्यात्व के रजकण कम आते है इसलिए निर्जरा कही है। प्रश्न २२-अधःकरण होने पर नियम से अपूर्वकरण होता है तब अधःकरण से आगम से जैन क्यो नहीं कहा गया है ? उत्तर-अधःकरण मे मिथ्यात्व के रजकण जितने आते है उतने ही खिर जाते हैं / इसलिए अघ करण से आगम मे जैन नहीं कहा है / प्रश्न २३–पया करणलब्धि होने पर सम्यक्त्व होता ही है ? उत्तर-हाँ ऐसा नियम है। जिसको चार लब्धियाँ तो हुई हो और अन्तमूहर्त पश्चात् जिसके सम्यक्त्व होना हो, उसी जीव के कारण लब्धि होती है। प्रश्न २४-उस फरणलब्धि वाले जीव को क्या उद्यम होता है ? उत्तर-बुद्धिपूर्वक तत्व विचार मे उपयोग को तद्प होकर लगाये, उससे समय-समय परिणाम निर्मल होते जाते हैं। जैसे-किसी के शिक्षा का विचार ऐसा निर्मल होने लगा कि जिससे उसको शीघ्र ही उसकी