________________ ( 286 ) दृष्टि' कहा है उसे नियम से सम्यक्त्व होता ही है। करणलब्धि वाले जीव की चार लब्धियां भी विचित्र प्रकार की होती हैं / / प्रश्न १६-वृहत् द्रव्य संग्रह गाथा 37 को टीका में लब्धियों के विषय में क्या कहा है ? उत्तर -"करणलब्धि सम्यक्त्व होने के समय होती है। अध्यात्म भाषा मे निज शुद्धात्माभिमुख परिणाम नाम के विशेष प्रकार की निर्मल भावनारूप खङ्ग से पुरुषार्थ करके कर्म शत्रुओ का नाश करता प्रश्न १७-प्रवचनसार में श्री जयसेनाचार्य ने क्या कहा है ? उत्तर-आगम की भाषा से अध करण, अपूर्वकरण, अनिवतिः करण नाम के परिणाम विशेषो के बल से जो विशेषभाव, दर्शनमोह का अभाव करने को समर्थ है उनमे अपने आत्मा को जोडता है। फिय निर्विकल्प स्वरूप की प्राप्ति के लिए-जैसे पर्यायरूप से मोती का दाना, गुणरूप से सफेदी आदि अभेदनय से एक हार ही मालूम पडता है; उसी प्रकार पूर्व कहे हुए द्रव्य-गुण-पर्याय अभेदनय से आत्मा ही है ऐसी भावना करते-करते दर्शनमोह का अधकार नष्ट हो जाता है। प्रश्न १५-कारण लब्धि फिसको नहीं होती है ? / उत्तर-जिस जीव को पुण्य की रुचि, बाहरी अनुकूलता अच्छी लगती है, जैसे हम कुछ दिन जिन्दा रहे तो धर्म समझे, आँख-नाककान शरीर ठीक रहे, रुपये-पैसा की अनुकूलता रहे, गुरु का उपदेश मिलता रहे तो मैं धर्म कर सकूँ ऐसे जीवो को करणलब्धि नहीं होती है। प्रश्न १६–करणलब्धि किसको होती है ? उत्तर-जिसको पुण्य की रुचि छूटती है। उसे अपूर्वकरण से निर्जरा होनी शुरू हो जाती है / कपाय का मन्द होना यह तो विकार का सूचक है उसकी वात यहाँ पर नही है, परन्तु अपूर्वकरण में निर्जरा गलन होने रूप अर्थात् नाश होनेरूप होती है।