________________ ( 288) होती है तब वह भगवान की या गुरु की देशना सुनने लायक है / तब उसे अपनी योग्यता से जैसा सच्चा गुरु कहते हैं वैसा ही ध्यान में बैठाता है, यह देशनालब्धि बताती है / यहा उपदिष्ट कहा है। कोई 'उपदेश विना अकेले शास्त्र वाँचकर देशनालब्धि प्राप्त नही कर सकता है। प्रश्न ११प्रायोग्य लब्धि क्या हैं ? त्तउर-कर्मों की पूर्व सत्ता अत कोडाकोडी सागर प्रमाण रह जाये और नवीन वध अत' कोडाकोडी प्रमाण उसके सख्यातवें भाव मात्र हो, वह भी उस लब्धि काल मे लगाकर क्रमश घटता जाये और कितनी ही पाप प्रकृतियो का वध क्रमशः मिटता जावे, इत्यादि योग्य अवस्था का होना सो प्रयोग्य लब्धि है। प्रश्न १२-प्रायोग लब्धि में उपादान निमित्त श्या है ? उत्तर-कर्म की स्थिति अन्त कोडाकोडी काल मात्र रहने योग्य जीव का परिणाम उपादान कारण है और द्रव्यकर्म की उस प्रकार की स्थिति का होना निमित्त कारण है। प्रश्न १३-प्रायोग्यलधि क्या बताती है ? उत्तर- फर्म की स्थिति स्वय घटती जाती है ऐसा कर्म की दशा का होना यह प्रायोग्य लब्धि बताती है / प्रश्न १४-ये चारो लब्धियां फिसको होती हैं और किसको नहीं होती हैं ? उत्तर-चारो लब्धियां मोटेरूप से भव्य और अभव्य दोनो के कही जाती है / परन्तु चारो लब्धियाँ होने के बाद कारण लब्धि होने पर तुरन्त ही सम्यक्त्व प्रकट होता है / जिसको करण लब्धि हो उसी को वास्तव में चार लब्धियाँ हुई है अन्यथा लब्धियो का कोई लाभ नही है। क्योकि कार्य होने पर कारण पर उपचार आता है। प्रश्न १५-गौमट्टसार में लब्धियों के विषय मे क्या कहा है ? उत्तर-जो जीव करणलब्धि मे आता है उसे 'सातिशय मिथ्या