________________ ( 280 ) (5) इसलिये आत्मा अपने 28 मूलगुणादिक जो रागादिक भाव है उन्हे छोडकर सकलचारित्र वीतराग भाव रूप होता है। (6) इसलिये निश्चय से सकलचारित्र वीतराग भाव ही सच्चा मुनिपना है। (7) सकलचारित्ररूप वीतरागभाव और 28 मूलगुणादि रूप प्रवृत्ति के निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है। (8) इसलिये 28 मूलगुणादि रूप प्रवृत्ति को मुनिपना कहा है सो कथन मात्र ही है। (6) परमार्थ से 28 मूलगुणादि रूप बाह्य क्रिया मुनिपना नहीं है-ऐसा ही श्रद्धान करना। प्रश्न 16-"(1) यहां प्रश्न है कि व्यवहारनय पर को उपदेश में ही कार्यकारी है या अपना भी प्रयोजन साधता है ? (2) समाधानआप भी जब तक निश्चयनय से प्ररूपित वस्तु को न पहिचाने तब तक व्यवहार मार्ग से वस्तु का निश्चय करे। (3) इसलिये निचली दशा में अपने को भी व्यवहारनय कार्यकारी है। (4) परन्तु व्यवहार को उपचार मात्र मानकर उसके द्वारा वस्तु को ठीक प्रकार समझे तब तो कार्यकारी हो। (5) परन्तु यदि निश्चयवत् व्यवहार को भी सत्यभूत मानकर "वस्तु इस प्रकार ही है" ऐसा श्रद्धान करे तो उल्टा अकार्यकारी हो जाये / (6) यही पुरुषार्थ सिसियुपाय श्लोक 6-7 में कहा है कि मुनिराज अज्ञानी को समझाने के लिये असत्यार्थ जो व्यवहारनय उसका उपदेश देते हैं। (7) जो केवल व्यवहार ही को जानता है उसे उपदेश ही देना योग्य नहीं है। (8) तथा जैसे कोई सच्चे सिंह को न जाने उसे बिलाव ही सिंह है। उसी प्रकार जो निश्चय को नहीं जाने उसका व्यवहार ही निश्चयपने को प्राप्त होता है।" इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये ? उत्तर-(१) मुनिपना 28 मूलगुणादि पालने के भावरूप है ऐसा व्यवहारनय पर को ही उपदेश मे कार्यकारी है या कुछ अपना भी प्रयोजन साधता है ? यह प्रश्नकार का प्रश्न है। (2) समाधानशिष्य भी जब तक निश्चयनय से प्ररूपित वीतराग शुद्धोपयोग रूप