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________________ ( 278 ) उत्तर-उभयाभासी मान्यता वाला शिष्य कहता है कि यदि 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपना असत्यार्थ है तो उसका उपदेश जिनमार्ग मे किसलिए दिया ? एक सफलचारित्र शुद्धिरूप निश्चय मुनिपने का ही निरूपण करना था। (2) उसका समाधान करते हुए उत्तर दिया है कि जिस प्रकार म्लेच्छ को म्लेच्छ भाषा विना अर्थ ग्रहण कराने मे कोई समर्थ नही है, उसी प्रकार 28 मूलगुणादि प्रवृत्ति रूप व्यवहार मुनिपने के विना सकल चारित्र शुद्धिरूप निश्चय मुनिपने का ज्ञान कराना अशक्य है-इसलिए असत्याथ व्यवहार मुनिपने का उपदेश है। (3) तथा समयसार गाथा 8 की टोका में कहा है कि यथार्थ निश्चय मुनिपने का ज्ञान कराने के लिए असत्यार्थ व्यवहार मुनिपने का उपदेश है। (4) परन्तु 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप व्यवहार मुनिपना है, उसका विषय भी है, वह जानने योग्य है, परन्तु असत्यार्थ व्यवहार मुनिपना अगीकार करने योग्य नही है / प्रश्न 14-"(1) व्यवहार बिना निश्चय का उपदेश कैसे नहीं होता? (2) समाधान-निश्चय से वीतरागभाव मोक्षमार्ग है उसे जो नहीं पहचानते उनको ऐसे ही कहते रहे तो वे समझ नहीं पाये। (3) परद्रव्य के निमित्त मिटने की सापेक्षता द्वारा, (4) व्यवहारनय से वत-शील-संयमादि-रूप वीतराग भाव के विशेष बतलाये तब उन्हें वीतराग भाव की पहिचान हुई।" इस वाक्य को मुनिपने पर लगाकर समझाइये? उत्तर- (1) 28 मूलगुणादि की प्रवृत्ति मुनिपना है-ऐसे व्यवहार के बिना सकलचारित्र शुद्धिरूप निश्चय मुनिपने का उपदेश कैसे नही होता ? इसको स्पष्टता से समझाइये / (2) समाधान-निश्चय से सकलचारित्र रूप वीतराग भाव ही मुनिपना है। उस सकलचारित्र वीतराग भाव रूप मुनिपने को जो नही पहिचानते उनसे ऐसे ही कहते रहे तो वे समझ नहीं पाये। (3) तब उनको जिन्हे सकलचारित्र रूप वीतराग मुनिपना प्रगट हुआ है, उनके 28 मूलगुणादिरूप प्रवृति के
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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