________________ (277 ) है नही, निमित्तादिक की अपेक्षा उपचार से कथन किया है"-ऐसा जानना / (4) 28 मूलगुणादि प्रवृत्ति मुनिपना नही है अपितु सकलचारित्र रूप शुद्धि ही सच्चा मुनिपना है-इस प्रकार जानने का नाम ही निश्चय-व्यवहार मुनिपने का ग्रहण है / प्रश्न १२-"तथा दोनो नयो के व्याख्यान को समान सत्यार्थ जानकर ऐसे भी है और ऐसे भी है इस प्रकार भ्रमरूप प्रवर्तन से तो दोनो नयो का ग्रहण करना नहीं कहा है।" इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये? उत्तर-कोई-कोई चतुर विद्वान निश्चयनय सकलचारित्र शुद्धिरूप भी मुनिपना है और व्यवहारनय से 28 मूलगुणादि प्रवृत्ति रूप भी मुनिपना है-ऐसा कहते है / क्या उन चतुर विद्वानो का ऐसा कहना झूठा है ? वहाँ उत्तर दिया है कि ऐसे चतुर विद्वानो का कहना झूठा ही है क्योकि निश्चय और व्यवहारनय के व्याख्यान को समान सत्यार्थ जानकर सकलचारित्र शुद्धिरूप भी मुनिपना है और 28 मूलगुणादि प्रवृत्तिरूप भी मुनिपना है-इस प्रकार भ्रमरूप प्रवर्तन से तो निश्चय-व्यवहारनय का ग्रहण करना जिनमार्ग मे नही कहा है। प्रश्न 13-"(1) फिर प्रश्न है कि यदि व्यवहारनय असत्यार्थ है तो उसका उपदेश जिनमार्ग में किसलिये दिया ? एक निश्चयनय ही का निरूपण करना था। (2) समाधान-ऐसा ही तर्फ समयसार गाथा 8 में किया है, वहाँ उत्तर दिया है-जिस प्रकार अनार्य अर्थात् म्लेच्छ को म्लेच्छ भाषा बिना अर्थ ग्रहण कराने में कोई समर्थ नहीं है; उसी प्रकार व्यवहार के बिना परमार्थ का उपदेश अशक्य है, इसलिये व्यवहार का उपदेश है। (3) तथा इसी सूत्र की व्याख्या मे ऐसा कहा है कि "व्यवहारनयोनानु सर्तव्य" इसका अर्थ है इस निश्चय को अगीकार कराने के लिये व्यवहार द्वारा उपदेश देते हैं। (4) परन्तु व्यवहारनय है, सो अंगीकार करने योग्य नहीं है।' इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये?