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________________ ( 270 ) रूप व्यवहार साधन द्वारा सकलचारित्र शुद्धिरूप मुनिपने की सिद्धि करना चाहता हूँ तो वर्तमान मे सकलचारित्र शुद्धिरूप मुनिपने का अनुभवन प्रगटपना मानना-तेरा मिथ्या हुआ। (5) इस प्रकार निश्चय-व्यवहार दोनो प्रकार का मुनिपना मानने मे परस्पर विरोध है। (6) सकलचारित्र शुद्विरूप आत्मा का अनुभवन निश्चय मुनिपना है और 28 मूलगुणादि अशुद्धि रूप प्रवृत्ति सो व्यवहार मुनिपना हैइस प्रकार तेरी मान्यतानुसार निश्चय-व्यवहार मुनिपने मे भी उणदेयपना नहीं बनता। प्रश्न 6-"(1) यहाँ प्रश्न है कि समयसारादि में शुद्ध आत्मा के अनुभव को निश्चय कहा है। व्रत-तप-संयमादि को व्यवहार कहा है-- उस प्रकार ही हम मानते हैं ? (2) समाधान-शुद्ध आत्मा का अनुभव सच्चा मोक्षमार्ग है इसलिये उसे निश्चय कहा। यहाँ स्वभाव से अभिन्न परभाव से भिन्न ऐसा शुद्ध शब्द का अर्थ जानना / (3) संसारी फो सिद्ध मानना-ऐसा भ्रम रूप अर्थ शुद्ध शब्द का नहीं जानना / (4) तथा व्रत-तपादि मोक्षमार्ग हैं नहीं, निमित्तादिक की अपेक्षा उपचार से इनको मोक्षमार्ग कहते हैं इसलिये इन्हें व्यवहार कहा है। (5) इस प्रकार भूतार्थ-अभूतार्थ मोक्षमार्गपने से इनको निश्चय-व्यवहार कहा है, सो ऐसा ही मानना / (6) परन्तु यह दोनो ही सच्चे मोक्षमार्ग हैं, इन दोनो को उपादेय मानना वह तो मिथ्याबुद्धि ही है।" इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये ? उत्तर-(१) उभयाभासी मान्यता वाला शिष्य कहता है कि हमने समयसारादि शास्त्रो का अभ्यास किया है / उसमे बताया है कि शुद्ध आत्मा का सकलचारित्र वीतराग दशा रूप अनुभव को निश्चय मुनिपना कहा है और 28 मूलगुणादि शुभभावो को व्यवहार मुनिपना कहा है। समयसारादि के अनुसार ही हम मानते हैं-आप हम झूठा क्यो कहते हो ? (2) समाधान किया है कि शुद्ध के दो अर्थ है एक तो द्रव्य अपेक्षा शुद्धिपना है दूसरा पर्याय अपेक्षा शुद्धपना है / वहाँ
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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