________________ ( 268 ) मिट्टी का घडा निरूपित किया जाये सो निश्चयनय और घत संयोग के उपचार से उसी को घृत का घडा कहा जाये सो व्यवहार / (5) ऐसे ही अन्यत्र जानना"-इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये ? ___ उत्तर-(१) पडित जी उभयाभासी मान्यता वाले शिष्य को समझाते हुए कहते है कि-तू ऐसा मानता है कि सकलचारित्ररूप शुद्ध आत्मा का अनुभवन सो निश्चय मुनिपना और 28 मूलगुणादिरूप प्रवृत्ति सो व्यवहार मुनिपना-सो ऐसा तेरा निश्चय-व्यवहार का स्वरूप मानना ठीक नहीं है। (2) क्योकि चारित्रगुण की शुद्ध 'पर्याय का नाम निश्चय मुनिपना और चारित्रगुण की 28 मूलगुणादिरूप अशुद्ध पर्याय का नाम व्यवहार मुनिपना-ऐसा निश्चय-व्यवहार का स्वरूप नहीं है, क्योकि प्रवृत्ति मे निश्चय व्यवहार नही हाता है, प्रवृत्ति मे नय का प्रयोजन ही नहीं है, प्रवृत्ति तो द्रव्य की परिणति है। इसलिये प्रवृत्ति मे निश्चय-व्यवहार नहीं होता है। (3) यदि प्रवृत्ति मे निश्चय-व्यवहार नहीं होता है तो निश्चय-व्यवहार किसने है ? उत्तर--अभिप्रायपूर्वक किसी वस्तु के प्ररूपण मे निश्चयव्यवहार होता है / मुनिपने को चारित्रगुण को सकलचारित्र शुद्धिरूप निरूपण करना सो निश्चयनय है और मुनिपने को 28 मूलगुणादि अशुद्धिरूप निरूपण करना सो व्यवहार है। (4) जैसे-[अ] मिट्टी मे अनादिकाल से प्रवृत्ति (पर्याय) का प्रवाह चला आ रहा है, वह प्रवृत्ति है / अतः प्रवृत्ति मे नय का प्रयोजन ही नही है। [आ] प्रवृत्ति तो मिट्टी का परिणमन है। [s] मानो मिट्टी की 10 नम्बर की पर्याय को ध्यान मे लिया और उस 10 नम्बर की पर्याय का नान आपने घडा रखा। तो उस घडा रूप प्रवृत्ति को मिट्टी का घडा कहना सो निश्चयनय है और घी के सयोग के उपचार से उसी घडे को घी का घड़ा कहना सो व्यवहारनय है, उसी प्रकार [अ] सम्यग्दर्शन होने के साथ ही आत्मा के चारित्र गुण मे पर्याय का प्रवाह चला आ