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________________ करता है। क्य पर मुनिपत स्वरूप शुद्धि को मूलगुणादि मान्यता ( 267 ) अपेक्षा उपचार से अन्यथा निरूपण करता है। (5) तथा शुद्धनय जो निश्चय है वह भूतार्थ है, जैसा वस्तु का स्वरूप है, वैसा निरूपण करता है। (6) इस प्रकार इन दोनो का स्वरूप तो विरुद्धता सहित है।" इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये। उत्तर-(१) सकलचारित्ररूप शुद्धि को निश्चय मुनिपना कहा है, वह प्रगट करने योग्य उपादेय है और 28 मूलगुणादि अशुद्धि को व्यवहार मुनिपना कहा है, वह हेय है। परन्तु उभयाभासी मान्यता वाला शिष्य निश्चय व्यवहार दोनो मुनिपने को उपादेय मानता है / इस पर 50 टोडरमल जी कहते हैं कि वह भी उसका भ्रम है। (2) क्यो भ्रम है ? क्योकि निश्चय-व्यवहार मुनिपने का स्वरूप तो परस्पर विरोध सहित है। (3) क्योकि समयसार मे निश्चय-व्यवहार मुनिपने का स्वरूप ऐसा बताया है कि--(४) व्यवहारनय मुनिपने का 28 मूलगुणादि अशुद्धिरूप निरूपण करता है वह अभूतार्थ है। क्यो अभूतार्थ है ? क्योकि वह मुनिपने का सकलचारित्र शुद्धि रूप निरूपण नहीं करता है। निमित्त की अपेक्षा उपचार से मुनिपने का अन्यथा निरूपण करता है। (5) तथा शुद्धनय जो निश्चय है वह मुनिपने को सकलचारित्र शुद्धिरूप निरूपण करता है वह भूतार्थ है। वह भूतार्थ क्यो है ? क्योकि जैसा मुनिपने को सकलचारित्र शुद्धिरूप स्वरूप है, वैसा निरूपण करता है / (6) इस प्रकार निश्चय-व्यवहार मुनिपने का स्वरूप तो विरुद्धता सहित है। प्रश्न 4-"(1) तथा तू ऐसा मानता है कि सिद्ध समान शुद्ध आत्मा का अनुभवन सो निश्चय और व्रत-शील-सयमादिरूप प्रवत्ति सो व्यवहार-सो तेरा ऐसा मानना ठीक नहीं है। (2) क्योकि किसी द्रव्य भाव का नाम निश्चय और किसी का नाम व्यवहार-ऐसा नहीं है / (3) एक ही द्रव्य के भाव को उस स्वरूप ही निरूपण करना सो निश्चयनय है / उपचार से उस द्रव्य के भाव को अन्य द्रव्य के भाव स्वरूप निरूपण करना सो व्यवहार है। (4) जैसे मिटटी के घडे को
SR No.010121
Book TitleJain Siddhant Pravesh Ratnamala 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDigambar Jain Mumukshu Mandal Dehradun
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages317
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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