________________ ( 265 ) 'विविक्त शय्यामन और काय क्लेश मे निरन्तर उत्साह रखते हैं, प्रायश्चित, विनय, वैय्यावृत्य, स्वाध्याय और ध्यान के लिये चित्त को वश मे करते हैं। प्रश्न १०-एकान्त व्यवहाराभासी वीर्याचार के लिए क्या करते एकान्त व्यर या नहीं होगा प्रधा उत्तर--कर्मकाण्ड मे सर्वशक्ति पूर्वक वर्तते हैं / प्रश्न ११-एकान्त व्यवहाराभासी इन सबमे सावधानी रखता है इसका फल क्या होगा और क्या नहीं होगा ? उत्तर- ऐसा करते हुये कर्म चेतना की प्रधानतापूर्वक अशुभभाव की प्रवृत्ति छोडते हैं, किन्तु शुभभाव की प्रवृत्ति को आदरने योग्य मानकर अगीकार करते है, इसलिये सम्पूर्ण क्रियाकाण्ड के आडम्बर से मतिकात दर्शन-जान-चारित्र की ऐक्य परिणतिरूप ज्ञान चेतना को वे किसी भी समय प्राप्त नहीं होते है। वे बहुत पुण्य के भार से मन्थर (मन्द, सुस्त) हुई चित्तवृत्ति वाले वर्तते है इसलिये स्वर्गलोकादि क्लेश प्राप्त करके परम्परा से दीर्घकाल तक ससार मे परिभ्रमण करते (16) उभयाभासी की प्रवृत्ति का विशेष स्पष्टीकरण प्रश्न 1-"(1) अंतरंग मे आपने तो निर्धार करके यथावत् निश्चय-व्यवहार मोक्षमार्ग को पहिचाना नहीं (2) जिनाज्ञा मानकर निश्चय-वहाररूप मोक्षमार्ग दो प्रकार मानते हैं।" इस वाक्य पर मुनिपने को लगाकर समझाइये? उत्तर--(१) उभयाभासी मान्यता वाले शिष्य ने अपनी ज्ञान की पर्याय मे निर्णय करके यथावत निश्चय-व्यवहार मुनिपने को पहिचाना नही। (2) तो फिर क्या हुआ ? जिन आज्ञा मानकर निश्चयव्यवहाररूप मुनिपना दो प्रकार मानते हैं / प्रश्न 2-"(1) सो मोक्षमार्ग दो नहीं हैं, मोक्षमार्ग का निरूपण